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मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

गीत ~ भीगी अँखियाँ,अँसुअन जल से ~ दिलीप कुमार पाठक

तन्त्री छंद आधारित एक गीत
विधान~8,8,6,10 पर यति, 32मात्राएँ|
दो चरण समतुकान्त, चरणान्त~दो गुरु|
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भीगी अँखियाँ,अँसुअन जल से,
थक हारे, पग घर लौटाये|
उस दिन तुमने, कहा कि आना,
हम पहुँचे, तुम क्यों नहिं आये||
नैनन अंजन, आँझ प्रिये जब,
बन ठन के,मिलने तुम आतीं|
पैर पैंजनी,करती छम छम,
कुछ सुनतीं,कुछ तुम कह जातीं||
फूल मिलन के, खिलते गंधिल,
पथ लख थक, मन में मुरझाये|
उस दिन तुमने,कहा कि आना,
हम पहुँचे, तुम क्यों नहिं आये||
मन में सोचा, जब आयेगी,
खायेगी, है चाट चटोरी|
चार समोसा, मिर्च पकौड़ी,
लीं टिक्की, दो तीन कटोरी||
गरम गरम थीं, फिर सब ठंडी,
ठगे खड़े, कुछ समझ न पाये|
उस दिन तुमने, कहा कि आना,
हम पहुँचे, तुम क्यों नहिं आये||
फूल खिले सब, झरने लागे,
झूठे~से,मन टूटे वादे|
प्यास हृदय की ,घुट घुट बोली,
चल घर अब, सिर बोझा लादे||
मौन बुलाये,कौन सुनाये,
छंदों में, सरस गुनगुनाये|
उस दिन तुमने, कहा कि आना,
हम पहुँचे,तुम क्यों नहिं आये||

©दिलीप कुमार पाठक "सरस"

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