तन्त्री छंद आधारित एक गीत
विधान~8,8,6,10 पर यति, 32मात्राएँ|
दो चरण समतुकान्त, चरणान्त~दो गुरु|
--------------💐------------------
भीगी अँखियाँ,अँसुअन जल से,
थक हारे, पग घर लौटाये|
उस दिन तुमने, कहा कि आना,
हम पहुँचे, तुम क्यों नहिं आये||
नैनन अंजन, आँझ प्रिये जब,
बन ठन के,मिलने तुम आतीं|
पैर पैंजनी,करती छम छम,
कुछ सुनतीं,कुछ तुम कह जातीं||
फूल मिलन के, खिलते गंधिल,
पथ लख थक, मन में मुरझाये|
उस दिन तुमने,कहा कि आना,
हम पहुँचे, तुम क्यों नहिं आये||
मन में सोचा, जब आयेगी,
खायेगी, है चाट चटोरी|
चार समोसा, मिर्च पकौड़ी,
लीं टिक्की, दो तीन कटोरी||
गरम गरम थीं, फिर सब ठंडी,
ठगे खड़े, कुछ समझ न पाये|
उस दिन तुमने, कहा कि आना,
हम पहुँचे, तुम क्यों नहिं आये||
फूल खिले सब, झरने लागे,
झूठे~से,मन टूटे वादे|
प्यास हृदय की ,घुट घुट बोली,
चल घर अब, सिर बोझा लादे||
मौन बुलाये,कौन सुनाये,
छंदों में, सरस गुनगुनाये|
उस दिन तुमने, कहा कि आना,
हम पहुँचे,तुम क्यों नहिं आये||
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे
भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400