गीत~16,16
डोरे डाल रहीं सुन्दरियाँ|
खाली बादल नैन लड़ाते||
बरसारानी सजकर आजा|
मिलके गर्मी दूर भगाते||
ये हवा चलत फिर मरी मरी|
गर्मी खाती आज दुपहरी~2
चुए पसीना झिलमिल बूँदें|
गर्म हवा के चाँटे खाकर||
सूखे अधरों जीभ फिराकर|
सूरज सिर बैठा खिसियाकर||
पाकड़ छाया राही पकरी|
गर्मी खाती आज दुपहरी~2
रात रात भर तारे गिनते|
हवा कैद सूरज के घर में||
धूप विरह में जलती देखी|
जीवन लगता आज अधर में||
झुलसे मन धरती हरी~भरी|
गर्मी खाती आज दुपहरी~2
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
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