सारा क़र्ज़े हुनर चुका दिया है ।
कूज़ागर ने दिया बना दिया है ।।
अय दरख़्तों को काटने वाले
हम परिंदों को क्यूँ उड़ा दिया है।
इक नदी की ख़मोश लहरों ने
मेरी आँखों में पानी ला दिया है।
क्या मैं सचमुच में एक मुजरिम हूँ
मेरे हक़ में क्यूँ फ़ैसला दिया है।
गाँव को हमसे क्या तवक़्क़ो थी
शह्र ने हमको क्या बना दिया है।
रात तू मुझसे क्यूँ हुई नाराज़
मेरा साया कहाँ छुपा दिया है।
#@रघुनंदन शर्मा "दानिश"@#
Raghunandan Sharma Danish
Raghunandan Sharma Danish
कूज़ागर ने दिया बना दिया है ।।
अय दरख़्तों को काटने वाले
हम परिंदों को क्यूँ उड़ा दिया है।
इक नदी की ख़मोश लहरों ने
मेरी आँखों में पानी ला दिया है।
क्या मैं सचमुच में एक मुजरिम हूँ
मेरे हक़ में क्यूँ फ़ैसला दिया है।
गाँव को हमसे क्या तवक़्क़ो थी
शह्र ने हमको क्या बना दिया है।
रात तू मुझसे क्यूँ हुई नाराज़
मेरा साया कहाँ छुपा दिया है।
Raghunandan Sharma Danish
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