ये कूचा आज तक महका नही क्या
यहाँ से वो कभी गुज़रा नही क्या?
दरो - दीवार से करते हो बातें
तुम्हारा कोई भी अपना नही क्या?
शजर के दिन गिने जाने लगे हैं
शजर पर कोई भी पत्ता नही क्या?
घड़े में जूँ का तूँ पानी है अब तक
यहाँ पर कोई भी प्यासा नही क्या?
अँधेरे को उजाला कह रहे हो
सिवा इसके कोई चारा नही क्या?
गिनाता है जो अहसानों को अपने
शजर के साए में बैठा नही क्या?
रघुनन्दन शर्मा "दानिश"
यहाँ से वो कभी गुज़रा नही क्या?
दरो - दीवार से करते हो बातें
तुम्हारा कोई भी अपना नही क्या?
शजर के दिन गिने जाने लगे हैं
शजर पर कोई भी पत्ता नही क्या?
घड़े में जूँ का तूँ पानी है अब तक
यहाँ पर कोई भी प्यासा नही क्या?
अँधेरे को उजाला कह रहे हो
सिवा इसके कोई चारा नही क्या?
गिनाता है जो अहसानों को अपने
शजर के साए में बैठा नही क्या?
रघुनन्दन शर्मा "दानिश"
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