नदी से कोई भी प्यासा न जाए
किनारों से अगर उलझा न जाए।
ये माना बन चुका है पुल नदी पर
मगर मल्लाह से उलझा न जाए।
समन्दर की बस इतनी आरज़ू है
नदी का रास्ता रोका न जाए।
चुराकर ले गया है कोई मुझको
मिरे अंदर मुझे ढूँढा न जाए।
कुछ इतने ग़ौर से देखो न उसको
कि फिर ख़ुद की तरफ़ देखा न जाए।
समझ लेना तुम्हारा दुःख बड़ा है
किसी दुःख में अगर रोया न जाए।
बिगड़ सकता है कश्ती का तवाज़ुन
किनारे की तरफ़ देखा न जाए।
रघुनंदन शर्मा "दानिश"
किनारों से अगर उलझा न जाए।
ये माना बन चुका है पुल नदी पर
मगर मल्लाह से उलझा न जाए।
समन्दर की बस इतनी आरज़ू है
नदी का रास्ता रोका न जाए।
चुराकर ले गया है कोई मुझको
मिरे अंदर मुझे ढूँढा न जाए।
कुछ इतने ग़ौर से देखो न उसको
कि फिर ख़ुद की तरफ़ देखा न जाए।
समझ लेना तुम्हारा दुःख बड़ा है
किसी दुःख में अगर रोया न जाए।
बिगड़ सकता है कश्ती का तवाज़ुन
किनारे की तरफ़ देखा न जाए।
रघुनंदन शर्मा "दानिश"
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