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सोमवार, 6 अप्रैल 2020

क्रंदन है उद्यानों में, पौधे अब न महफूज रहे - सुमित शर्मा 'पीयूष'

क्रंदन है उद्यानों में, पौधे अब न महफूज रहे!
उपवन में दो फूल मगर, माली कुल्हाड़ी पूज रहे।

पुष्प की अनदेखी कर, देखो,तना काटने चले गए।
अपने सुत की लाश लाँघ कर, प्रेम बाँटने चले गए।

चर्चा कर शत्रु से अपने, लश्कर के सब भेदों का।
तरस रहे गठबंधन को वह, ज्ञान जलाकर वेदों का।।

मेरी चिता की लकड़ी से, वह भँवर पाटने चले गए।
अपने सुत की लाश लाँघ कर, प्रेम बाँटने चले गए।।

जिसने सरे-राह गाली दी, मात-पिता और बहनों को।
उसके सिर पर खूब सजाया, रिश्ते वाले गहनों को।

अपना ही स्तर नीचा कर, थूक चाटने चले गए।
अपने सुत की लाश लाँघ कर, प्रेम बाँटने चले गए।।

खुद की बगिया उजड़ रही है, भान नहीं है माली को,
सींच रहे हैं लहू झाँककर, किसी पड़ोसिन-डाली को।।

हम तो थे निरवंश, उधर वो फसल काटने चले गए।
अपने सुत की लाश लाँघ कर, प्रेम बाँटने चले गए।

✍✍✍✍✍
~पं० सुमित शर्मा "पीयूष"

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