मनहरण घनाक्षरी
तार तार तारतम्य,
गीत गान का गगन|
गन्धिला गोधूलि गोरी,
भाव भौंन भान में||
चमचमाती चाँदनी,
कामिनी सी कुमुदिनी|
उनींदी है उन्मादिनी,
धुन धरे ध्यान में||
अलसायी अँगड़ाई,
बाती बात से बड़ाई|
मंद मंद मुस्कायी,
मनमीत मान में||
प्रेम की पवन पाय,
सजनी सजन साथ |
साँझ शयन सेज सज ,
मगन मुस्कान में ||
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
मनहरण~घनाक्षरी
तंग है बिछौना और ,पैर चादर निकाल|
खाली बैठ मत कुछ, काम धाम कर ले||
सुरसा-सी बढ़ रही, मँहगाई आज मीत|
काम धाम कर ले कि ,ऊँचा दाम कर ले|
आन वान शान गान, देश प्रेम है महान|
ऊँचा दाम कर ले कि,जग नाम कर ले||
तन पञ्च तत्त्व में से, उड़ जायेगा पखेरू|
जग नाम कर ले कि, राम राम कर ले||
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
मनहरण घनाक्षरी
तार तार तारतम्य,
गीत गान का गगन|
गन्धिला गोधूलि गोरी,
भाव भौंन भान में||
चमचमाती चाँदनी,
कामिनी सी कुमुदिनी|
उनींदी है उन्मादिनी,
धुन धरे ध्यान में||
अलसायी अँगड़ाई,
बाती बात से बड़ाई|
तम तमतमाता सा ,
मनमीत मान में||
प्रेम की पवन पाय,
सजनी सजन साथ |
साँझ शयन सेज सज ,
मगन मुस्कान में ||
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
मनहरण घनाक्षरी
अत्याचारी जब सिर, चढ़ बोलने लगी तो|
दाँत-पीस क्रान्तिकारी,लोहा लेने आ गया|
धरा-धानी, रक्त-सनी, अलफ्रेड पार्क बनी|
आँखों का उभर खून, तन में समा गया||
टप टप गिरे गोरे,और झटपटाये कई|
तड़ातड़ गोलियों का,ताण्डव दिखा गया||
सतत नमन मेरा,तुमको आजाद वीर|
स्वाभिमान-परिभाषा, हमको सिखा गया||
मनहरण-घनाक्षरी
करने शृंगार बैठी, आज मेरी प्राण प्यारी|
बिंदिया सुभाल लाल, होंठ लाली लाल है||
लाल लाल परिधान,लाल चूड़ियाँ हैं|
गंधवाली हिना हाथों,रची लाल लाल है||
हाथ में गुलाब लाल, लिए चकाचौंध लाल|
लालिमा निहार मन,हुआ लाल लाल है||
गाल लाल होंठ लाल,अंग-अंग लाल लाल|
लाल लाल परिदृश्य, देख लाल लाल है ||
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
विधा-मनहरण-घनाक्षरी
विषय-सावन
तन-मन कौ जलाय,अंग-अंग झुलसाय,
बिन तेरे कहाँ जाय,जिया अकुलात है||
सावनी फुहार झरै,झरै झकझोरै मोहिं|
झूला पींग पींगने कौ,हेरि-हेरि जात है||
कारे-कारे मेघा नभ, उमड़-घुमड़ आये|
रैन भई है अँधेरी, मन सकुचात है||
सावन न जाये बीत,आजा पाऊँ तेरी प्रीत|
बोल परदेशी-मीत,काहे नहीं आत है||
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
विधा-मनहरण-घनाक्षरी
विषय-हमारे जवान
सीमा के प्रहरी आज, सीना ताने डटे सब |
देश बेटे सभी अब, सीना तान तनिए||
हो अनीति समझौता, छल-बल भ्रष्टाचारी |
शत्रु सदा शत्रु होता, शत्रु सदा हनिए||
स्वच्छ जल के समान, हैं हमारे ये जवान|
आन वान शान हेतु, पर्वतों से छनिए||
भारत सपूत बीर, आओ शत्रु-सीना चीर|
दुष्ट के दलन हेतु, नरसिंह बनिए||
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
मनहरण-घनाक्षरी
जय हनुमान
जय हनुमान
असुर पिशाच आदि ,नाम सुन काँपते हैं।
नाम लेता जो भी, बाधा आती नहीं मग में।।
रामराम रटते हैं,राम राम जपते हैं।
राम राम राम राम,राम रग रग में।।
करें दुष्ट का दलन ,रहें प्रेम में मगन।
प्रेम से पुकारेंगे तो,हैं हमारे संग में।।
गुणवान दयावान,ज्ञानवान बलवान।
हनुमान के समान,नहीं कोई जग में।।
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
विधा-मनहरण घनाक्षरी।
पढ़ो छंद प्यार भरा,नेह व दुलार भरा।
शब्द-शब्द भाव भरी,जहाँ बात करते।।
हरते हैं ताप सब,दिल का गुबार सब।
जहाँ एक दूसरे पे,हम आप मरते।।
तन मन को भिगोते,झरते फुहार-सम।
प्रेम पगे भाव हम,मिल साथ भरते।।
हँसते हँसाते खूब,दूब जैसे हरषाते।
आप होते साथ तब, हम नहीं डरते।।
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
शहीद~ए~आजम भगत सिंह को भावभरी श्रद्धांजलि समर्पित करते हुए ~
मनहरण घनाक्षरी
हिन्द देश की है शान, भगत महान वीर|
धूल ही चटायी सदा, बैरियों की चाल को||
जिसने छठी का दूध , गोरों को दिलाया याद|
खूब है छकाया ,काटा,जिय के जंजाल को||
चढ़ गया फाँसी फंदा,मातृभूमि हित हेतु|
ललकारा ताल ठोक, हँस~हँस काल को||
हो गया शहीद वीर, किन्तु हार नहीं मानी|
नमन हजार बार ,भारती के लाल को ||
दिलीप कुमार पाठक सरस
विधा-मनहरण घनाक्षरी
पढ़ो छंद प्यार भरा,नेह व दुलार भरा।
शब्द-शब्द भाव भरी,जहाँ बात करते।।
हरते हैं ताप सब,दिल का गुबार सब।
जहाँ एक दूसरे पे,हम आप मरते।।
तन मन को भिगोते,झरते फुहार-सम।
प्रेम पगे भाव हम,मिल साथ भरते।।
हँसते हँसाते खूब,दूब जैसे हरषाते।
आप होते साथ तब, हम नहीं डरते।।
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
कलाधर घनाक्षरी छंद
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शिल्प - यह ऐक वार्णिक छंद है, इस में चार चरण होते हैं,
प्रत्येक चरण में गुरु लघु की पन्द्रह आवृत्ति और
और अंत में एक गुरु मिलाकर ३१वर्ण होते हैं |
शत्रुमुण्ड काट-काट, माल डाल के विशाल|
चण्ड क्रोध में प्रचण्ड, रक्त की पिपासिनी||
दुष्ट दैत्य चीरफाड़, प्रेमभाव का प्रसार|
आदि शक्ति मातु आपु ,दम्भद्वेष की विनाशिनी||
लाल की सुनो पुकार, शेर पे सवार होय|
शैल छोड़ पास आउ,शैल की निवासिनी||
हाथ शीश फेरि मातु ,देउ लाल कौ दुलार|
बोल है अमोल मातु, आपु हैं सुभाषिनी||
दिलीप कुमार पाठक सरस
कलाधर घनाक्षरी छंद
फूल फूल से सुगन्ध, आ रही बयार बीच|
गन्धिला हुई बहार, प्रेमभाव खोलता||
डोलता सदैव पास ,भासमान है समीर|
मीत साथ की मिठास,प्यास मध्य घोलता||
प्रीत रीत है पुनीत,गीतगान बातचीत |
गूँजता सदैव छंद, शब्द शब्द बोलता||
एक सत्य और मीत, मौन साध लेत आज|
दर्द आह की कराह, कौन है टटोलता||
दिलीप कुमार पाठक सरस
शहीद~ए~आजम भगत सिंह को भावभरी श्रद्धांजलि समर्पित करते हुए ~
मनहरण घनाक्षरी
हिन्द देश की है शान, भगत महान वीर|
धूल ही चटायी सदा, बैरियों की चाल को||
जिसने छठी का दूध , गोरों को दिलाया याद|
खूब है छकाया ,काटा,जिय के जंजाल को||
चढ़ गया फाँसी फंदा,मातृभूमि हित हेतु|
ललकारा ताल ठोक, हँस~हँस काल को||
हो गया शहीद वीर, किन्तु हार नहीं मानी|
नमन हजार बार ,भारती के लाल को ||
दिलीप कुमार पाठक सरस
हनुमत भक्ति
छंद~मनहरण घनाक्षरी
राम मेरे मन रमे, राम मेरे तन रमे|
रोम रोम पल पल,हुआ मेरे राम का||
राम को जो भजता है, राम को जो पूजता है|
वही मेरे काम का है, वही मेरे काम का||
श्रीराम वाल्मीकि प्यारे , तुलसी के न्यारे राम|
राम नाम प्यारा अति, अवध ललाम का||
राम नाम जपना है, राम नाम रटना है|
एक नाम राम राम, नाम सत्य धाम का||
दिलीप कुमार पाठक सरस
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