मिरी अहले वफा देखो सनम कैसी वफा दी है ।
पुराना जख्म गहरा हो रहा कैसी दवा दी है ।।
पुराना जख्म गहरा हो रहा कैसी दवा दी है ।।
मिरे ये जख्म मरहम से नही इल्जामों से भर कर ।
मुझे उसने न जाने इश्क में कैसी सजा दी है ।।
मुझे उसने न जाने इश्क में कैसी सजा दी है ।।
लरजते होठों की बढने लगी है प्यास परदेशी ।
कसक मिलने की दिल में आज ये कैसी उठा दी है ।।
कसक मिलने की दिल में आज ये कैसी उठा दी है ।।
नही मिलती है अब दिल को तुम्हारे ख्यालों से फुर्सत ।
मेरे महबूब तुमने इश्क की कैसी हवा दी है ।।
मेरे महबूब तुमने इश्क की कैसी हवा दी है ।।
खुदा ने आपको क्या खूबसूरत आँखें दी जानम ।
जो भी देखे हुआ मदहोश ये कैसी अदा दी है ।।
जो भी देखे हुआ मदहोश ये कैसी अदा दी है ।।
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