क्या हो गया?
मानव को क्या हो गया,
क्यों छिपकर बैठा आज?
मुखपर भी कपड़ा बन्धा,
सहमा-सा दिखता आज।
जाने किससे डरा हुआ है,
ज्यों व्यथित लगें वनराज।
गायब हैं सड़कों गाड़ियां,
अब आती नहीं आवाज़।
कहां गए इंसान हैं सारे ?
कैसा गिरा है उनपर गाज।
शोर-शराबा सब गायब है,
इसका है जरूर कुछ राज़।
हां भाई,इसका ही किया है,
चाहते करना सब पर राज।
खुद है बनाया काल इसी ने,
आया न तनिक भी लाज ।
रक्तबीज सा डोल रहा वह ,
उससे ही छिपता यह आज।
होगा संहार जरूर शीघ्र पर,
तब तक रूका रहेगा काज।
पछताते हाथों को मलते हैं,
मुख पर छाया इनके लाज।
डॉ सरला सिंह स्निग्धा
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