मैं पढ़ूं जब ग़ज़ल तो सुना कीजिये ।
शेर अच्छा कहूं ये दुआ कीजिये ।।
साथ हूँ आपके हर घडी जैसे मैं ,
खवाब ऐसे हमेशा बुना कीजिये l
कुछ तो फ़िरकापरस्ती से हटकर कहें ,
सोच का दायरा अब बडा कीजिये l
दर्द मिटने लगे हैं पुराने सभी ,
ज़ख्म फ़िरसे न कोई हरा कीजिये l
रब ने इंसा बनाकर के भेजा हमें ,
होसके तो सभी का भला कीजिये l
खवाब में आके मुझको जगाना भी है ,
नीन्द आये मुझे ये दुआ कीजिये l
जब भी खुशियां मिले तुम को ए दोस्तों ,
शुक्रिया फ़िर खुदा का अदा कीजिये l
ख्वाहिशे हों सभी तुझमें ज़िन्दा मेरी ,
हश्र तक प्यार का सिलसिला कीजिये l
साया देंगे नहीं ये हैं ऊँचे शजर,
धूप को सर पे रखके चला कीजिये l
लोग क्या -क्या समझ लेते हैं ए "निशा ",
मुस्कुरा के न सबसे मिला कीजिये l
डा. नसीमा निशा
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