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रविवार, 5 अप्रैल 2020

ये धुन्ध कैसी छाई है, देता न दिखाई है - आदित्य तोमर

ये धुन्ध कैसी छाई है, देता न दिखाई है 
जैसे भोर में ही घोर रात घिर आई है 
वायु ज़हरीली है, पानी पर पहेली है 
किन्तु किसी की न अभी आँख कहीं गीली है 
कोई बोलता है दोष है यही दीवाली का 
कोई बोलता है सारा दोष है पराली का 
किन्तु मूल दोष तक दृष्टि नहीं मोड़ेंगे 
धरती को जीवन के योग्य नहीं छोड़ेंगे 

शस्य-श्यामला की बातें आज बेईमानी हैं 
चारों ओर दीखतीं विनाश की निशानी हैं 
भव्यता का दिव्य स्वप्नजाल जैसे टूटा हो 
जैसेकि पुत्र ने ही हाय, माँ को लूटा हो
ऐसा कुलघाती बना मानव ये आज का 
इसके अलावा दोषी और न समाज का 
जाने किस रोज़ पंजे अपने सिकोड़ेंगे 
धरती को जीवन के योग्य नहीं छोड़ेंगे 

यमुना ने सदियों की रूप निधि खोई है 
गंगा भी भाग्यहीनता पे फूट रोई है 
माँ भारती की माला पे हाथ गये डाले हैं 
सभी नदियाँ पवित्र बन गयीं नाले हैं 
जंगलों को कंकरीट से कुचल डाला है 
पर्वतों को नित्य खोद-खोद के खंगाला है 
ऐसे बुरे कर्म पर माथा नहीं फोड़ेंगे 
धरती को जीवन के योग्य नहीं छोड़ेंगे 
-
आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ

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