इश्क और जंग में मना क्या है ,
दे दिया दिल तो सोचना क्या है l
मेरे हिस्से का वो अगर है गम ,
तो मुझे देदे ,पूछना क्या है l
अपनी बनती नहीं सियासत से ,
फिर सियासत से जोड़ना क्या है l
अपनी क़ीमत ही जब नहीं कोई ,
सोने चांदी में तोलना क्या है l
लौट आएगा घर समय से वो ,
बारहा उसको टोकना क्या है l
ये फ़साना तेरा- मेरा है 'निशा ',
राज़ ये दिल का खोलना क्या है l
डा.नसीमा निशा
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