ग़ज़ल :-
मेरे आँगन से उजाला क्या गया
छोड़कर मुझको मिरा साया गया।
मैंने देखा था किसी को डूबते
और मैं भी डूबते देखा गया।
दोस्त घर आया था आधी रात में
मुझसे दरवाज़ा नहीं खोला गया।
भीड़ से ख़ुद को बचा लाया था मैं
और अपने आप से टकरा गया।
ठीक से दिखता नहीं पैकर तिरा
तू मिरे नज़दीक इतना आ गया।
बादलों को है ख़बर इस बात की
कौन किस दरिया से कब प्यासा गया।
मेरे आँगन से उजाला क्या गया
छोड़कर मुझको मिरा साया गया।
मैंने देखा था किसी को डूबते
और मैं भी डूबते देखा गया।
दोस्त घर आया था आधी रात में
मुझसे दरवाज़ा नहीं खोला गया।
भीड़ से ख़ुद को बचा लाया था मैं
और अपने आप से टकरा गया।
ठीक से दिखता नहीं पैकर तिरा
तू मिरे नज़दीक इतना आ गया।
बादलों को है ख़बर इस बात की
कौन किस दरिया से कब प्यासा गया।
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Raghunandan Sharma |
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