ख़ुद को अगर हरा देता हूँ
समझो इश्क़ निभा सकता हूँ।
कोई नहीं दुःख सुनने वाला
रोकर काम चला लेता हूँ।
मुझको चुप रहना आता है
मैं भी शोर मचा सकता हूँ।
दुनिया वहशी कह सकती है
इतनी ख़ाक उड़ा लेता हूँ।
सब के सब मल्लाह हैं इसमें
कैसे नाव बचा सकता हूँ।
दुनियादारी सीख ली मैंने
अब मैं उसको गँवा सकता हूँ।
रघुनंदन शर्मा "दानिश"
समझो इश्क़ निभा सकता हूँ।
कोई नहीं दुःख सुनने वाला
रोकर काम चला लेता हूँ।
मुझको चुप रहना आता है
मैं भी शोर मचा सकता हूँ।
दुनिया वहशी कह सकती है
इतनी ख़ाक उड़ा लेता हूँ।
सब के सब मल्लाह हैं इसमें
कैसे नाव बचा सकता हूँ।
दुनियादारी सीख ली मैंने
अब मैं उसको गँवा सकता हूँ।
रघुनंदन शर्मा "दानिश"
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