जब से उनकी नज़र हो गई।
हर खुशी हमसफ़र हो गई।।
राहे उल्फ़त में हर इक कदम,
मैं तेरी रहगुज़र हो गई।
उनको पा के भी पा न सके,
हर दुआ बेअसर हो गई।
आज की शब भी तन्हा कटी,
वो न आये सहर हो गई।
उनसे बिछड़े तो ऐसा लगा,
ज़िंदगी मुख़्तसर हो गई।
उसने महफ़िल में रुसवा किया,
और मेरी आँख तर हो गई।
आप सब ने मुझे सुन लिया,
शायरी मोतबर हो गई।
बात कहती है सच्ची 'निशा'
अब तो ये भी निडर हो गई।
©डॉ नसीमा निशा
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