तेरे कंगन की खनकती खनक पीकर आ गया।
मैं तेरी गलियों की सोंधी महक पीकर आ गया।
उफ्फ! तेरा दीदार बेशक मैं न कर पाया मगर।
मैं तेरे महफ़िल की पूरी मशक पीकर आ गया।
सुन रखा था कि तेरी आवाज में है चाशनी।
कंठ में लावण्य है, और शब्द तुलती मापनी।
मैंने सोचा कि तेरी आवाज का मय चख ही लूँ।
पर छतों पर कुछ पखेरू गा रहे थे रागिनी।
उन चिड़ों की चहचहाती चहक पीकर आ गया।
मैं तेरी गलियों की सोंधी महक पीकर आ गया।
था सुना आँचल में तेरे चांदनी शीतल बसे।
भोर की ठंडक, सुनहरी शाम का बादल बसे।
मैंने सोचा बाँट लूँ ठंडक तुम्हारे ओट की।
फासलों में धूप थी, अरमान सारे चल बसे।
फासलों के धूप की वह दहक पीकर आ गया।
मैं तेरी गलियों की सोंधी महक पीकर आ गया।
✍✍✍✍✍
~पं० सुमित शर्मा "पीयूष"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे
भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400