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बुधवार, 8 अप्रैल 2020

ग़ज़ल :- कोई पराया भी अपना निकल जाये तो - डा नसीमा निशा

कोई पराया भी अपना निकल जाये तो 
और अपना ही कोई बदल जाये तो 

ये ज़बा ही तो है गर फ़िसल जाये तो 
कोई लफ़्ज़े मुहब्बत निकल जाये तो 

इसको  क़ाबू  मे रखने की, की कोशिशे 
दिल ये बच्चआ सा है फ़िर मचल जाये तो

रात काली अमावस भरी है तो क्या 
चाँद ऐसे में कोई निकल जाये तो 

हर किसी पे यक़ी भी तो होता नहीं 
बनके अपना ही कोई जो छल जाये तो

ये नहीं कि नज़र से वो गिर जायेगा 
कोई गिर के भी बोलो सम्भल जाये तो 

चाँद देने की उसको ज़रूरत नहीं 
बच्चा बातों से यों ही बहल जाये तो 

डा नसीमा निशा 

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