◆ भालचंद्र छंद ◆
विधान~
[जगण रगण जगण रगण जगण+गुरु लघु]
(121 212 121 212 121 21)
17 वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत।
चलो सुजान राह में सदैव कष्ट हैं अपार।
थको नहीं करो प्रयत्न राह खोज बार-बार।।
बढ़ो सदा उमंग से नवीन साधना प्रयास।
छिपा समीप लक्ष्य है,निहार"सोम"आस-पास।।
~शैलेन्द्र खरे"सोम"
अनुपम साहित्य सेवा
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