हिंदी साहित्य वैभव

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मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

10:37 am

ऑनलाइन भव्य वीडियो कवि सम्मेलन

*विशेष सूचना*

घर पर रहें_सुरक्षित रहें_कोरोना_19_जानलेवा है
ऑनलाइन भव्य वीडियो कवि सम्मेलन

दिनांक~ 10 मई 2020
विषय - मातृ दिवस
समय~ सायं 7 बजे से
स्थान~ काव्य गंगा प्रतिभा निखार मंच
संचालक~ आ. विकास भारद्वाज
सरस्वती वंदना ~
स्वागतगीत~

*ऑनलाइन भव्य वीडियो कवि सम्मेलन *

*1-वीडियो रिकार्डिंग निम्नतम समय सीमा ~5 मिनट तथा माँ पर ही काव्यपाठ की वीडियो भेजें तथा वीडियों भेजने से पहले एक बार संयोजक महोदय से जरूर सम्पर्क करें*

*2-एक फोटो, संक्षिप्त परिचय  ,वीडियो प्रतिभाग हेतु सर्वप्रथम आवश्यक |*

*3- प्रतिभागी द्वारा वीडियो 5 मई तक संयोजक महोदय को उपलब्ध कराना आवश्यक है।*
*6- प्रत्येक प्रतिभागी को तुलसी साहित्यिक संस्था बदायूँ की ओर से एक प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया जायेगा|*
7-कार्यक्रम के बाद की वीडियो *काव्य गंगा यूटयूब चैनल* पर उपलब्ध रहेगी 

*🌺नि:शुल्क पंजीकरण की अंतिम तिथि ~05/05/2020*

शीघ्र सम्पर्क करें ~
आ. विकास भारद्वाज जी
कार्यक्रम संयोजक, काव्य गंगा प्रतिभा निखार मंच
  9627 193400

आ० पटबदन शंखधार जी
कार्यक्रम संचालक, काव्य गंगा प्रतिभा निखार मंच
9761 426234

आ० कामेश पाठक जी
कार्यक्रम अध्यक्ष,  काव्य गंगा प्रतिभा निखार मंच
9927 355912

आ० पवन शंखधार जी
सचिव , तुलसी साहित्यिक संस्था (बदायूँ)
9927 433400
🌺🙏🙏🙏🙏🙏🌺

सोमवार, 27 अप्रैल 2020

8:03 am

परशुराम जयंती के उपलक्ष्य में ऑनलाइन कवि सम्मेलन की खबर कुछ अखबार, बेब पोर्टल पर प्रकाशित

तुलसी साहित्यिक सामाजिक संस्था द्वारा ऑनलाइन कवि सम्मेलन आयोजित
बदायूं। परशुराम जयंती के उपलक्ष्य में तुलसी साहित्यिक सामाजिक संस्था के द्वारा एक ऑनलाइन कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। जिसकी अध्यक्षता कामेश पाठक तथा सरस्वती वंदना डॉ. प्रीती हुंकार मुरादाबाद ने की। कवि सम्मेलन का संचालन ओजस्वी कवि षटवदन शंखधार ने किया। जिसमें सभी कवियों ने वीडियो के माध्यम से काव्य पाठ देर रात किया। जिसमें कवियों ने इस प्रकार काव्य पाठ किया।
शैलेन्द्र मिश्रा देव ने कहा कि युग द्रष्टा युग स्रष्टा, परसुराम की जय, शिव के अनन्य भक्त ,को मेरा प्रणाम है। मध्य प्रदेश के सुनील नागर सरगम ने कहा कि ईश्वर ने अवतार लिया है परशुराम बन कर आये। भोले नाथ को गुरु बनाया, दिव्य शस्त्र को पाये।

बदायूँ एक्सप्रेस पर
http://www.badaunexpress.com/archives/209434

विकास भारद्वाज ने कहा कि सिर पर जटा,क्रांतिदूत ने दुनिया को वीरता दिखाई। परशुराम ने भीष्म, द्रोण, कर्ण को धनुर्विद्या सिखाई। सुनील कुमार शर्मा ने कहा कि कांधे पे पिनाक धारि, कर में कुठार लिए, अरि के दमन हेतु, चले भृगुनाथ हैं। मिर्जापुर से डा.कनक पाठक ने कहा कि विष्णु के कुल अवतारों में षटावतार तुम्हारा है, हे! जमदाग्निय वर दो हमको सहत्र प्रणाम हमारा है। शाहजहांपुर से प्रदीप बैरागी ने कहा कि परशुराम हैं राम के, युग सृष्टा अवतार। आकर पृथ्वी पर सकल,किया जीव उद्धार ।

यह कार्यक्रम काव्य गंगा यूटयूब चैनल पर भी उपलब्ध है :-


मुम्बई के रवि रश्मि अनुभूति ने कहा कि आज अक्षय तृतीया के दिन ही जयंती परशुराम की, क्रोध के भंडार रहे, प्यार के प्रतीक परशुराम की। संचालक षटवदन शंखधार ने कहा कि मातु रेणुका का पुत्र, वीरता का था प्रतीक, तीनों लोक नाम सुन,कांप कांप जाते थे, तीरों से था भरा हुआ,तरकश देख देख, शत्रु दल अति शीघ्र,भाव भांप जाते थे, वीर योद्धा जिस ओर, मुड जाता एक बार, दानवों के मुंड मुंड ,धूल में समाते थे, साधु जन विप्र जन,भृगु जी का नाम जप, हिय में आनंद लिए, अति सुख पाते थे।

यह खबर Sks life.in पर भी प्रकाशित है :-
http://skslife.in/?p=20923#.XqbRK4Vv7BA.whatsapp

भोपाल से नीतू राठौर ने कहा कि माता के प्रति प्रेम भाव था, मान रखा आज्ञा का पिता की जो थे पालनहार, पिता ने क्रोधवश चार पुत्रों को श्राप दिया खो देने का अपने विवेक विचार।
बंदा से प्रमोद दीक्षित मलय ने कहा कि महाकाल शिव की आराधना में रत वह। भाव भक्ति प्रबल रही निष्काम हो गया। कर में परशु गहे, कांधे शरासन सोहे। तापस धनुर्धारी परशुराम हो गया। कामेश पाठक ने कहा कि भाल पे लाल त्रिपुण्ड लसै,उर रुद्र की माल विराजत है। वायें कर मे धनुवाण सजे,दहिने कर फरशा साजत है। रस रौद्र बसे जैसे नैनन मे,बैनन रस वीर सुहावत है । दास हृदय प्रभु वास करौ,तुम्हें पाठक शीश झुकावत है। बिहार दरभंगा से विनोद कुमार ने कहा कि छठे अवतार रूप विष्णु जी का आप ही हों भीष्म द्रोण कर्ण सारे शिष्य कहलाते हैं। उज्जवल वशिष्ट ने कहा कि कलियुग में साधू संतों का जीना है दुशवार, परशुराम भगवान तुम्हारा कब होगा अवतार। 

परशुराम जयंती के उपलक्ष्य में सामाजिक संस्था के द्वारा  आनलाइन कवि सम्मेलन का हुआ आयोजन - दैनिक वाडेकर टाइम्स - 

मेरठ से यतिन अधाना ने कहा कि सकल जगत की रक्षा में वो परशु धार चले रण में,अहंकार का दमन करनेप्रभु अवतार चले रण में लें। विष्णु असावा ने कहा कि प्रभु परशुराम मेरे, तुमने ही दुनिया तारी तुमने ही दुष्ट मारे, तुमने धरा उबारी।
कवि सम्मेलन में तुलसी साहित्यिक सामाजिक संस्था के अध्यक्ष अतुल कुमार श्रोत्रिये ने सबका हदय से आभार व्यक्त किया। ग्रुप में श्रोता के रूप में सीमा चौहान, हरिचंद्र सक्सेना, डां राकेश कुमार जायसवाल, कौशिक सक्सेना ने सभी की कविताओं पर सटीक विश्लेषण टिप्पणी की और उत्साह वर्धन किया। संस्था सचिव पवन शंखधार ने सभी साहित्यकारों का आभार किया।

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

12:48 am

वक़्त - वक़्त की बात

वक़्त वक़्त की बात
आज वही लोग
ज़िनके पास कभी
वक़्त ही नहीं
होता था अपने लिये
आज बड़े इतमिनान से
वक़्त निकाल कर
बार बार अपनी
पारखी नज़र सहारे
निगाह घड़ी पर टिका
वक़्त टकटकी
लगा देख रहे
वक़्त की कीमत....

आपका अपना 
वीरेन्द्र  कौशल

गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

12:01 pm

भारत जिसका शौर्य सूर्य है दीप्तिमान सदियों से - आदित्य तोमर

भारत जिसका शौर्य सूर्य है दीप्तिमान सदियों से।
झलका जिसका गर्व पहाड़ों से, ममता नदियों से।।

कण-कण में छविचित्र राम के, पग पग तीर्थ अटे हैं।
जोकि समय के झंझावातों से भी नहीं मिटे हैं।।

इसने स्वर्णमयी वैभव भी, काला युग भी देखा।
उस वर्णन से भरा पड़ा है इतिहासों का लेखा।।

उन लेखों में परम पूज्य है नाम एक बलिदानी।
जोकि कभी स्वातन्त्र्य समर का रहा प्रथम सेनानी।

बेड़ी में जकड़ी जब भारत माँ की नर्म कलाई।
क्रूर अनय अत्याचारों की खिली वेल, लहराई।।

बर्बर चोर लुटेरे ही जब सत्तासीन हुए थे।
सच के नीति-नियन्ता सब उनके आधीन हुए थे।।

झूठे को झूठा, पापी को पापी कौन कहे फिर।
सच्चाई के साथ अडिग होकर भी कौन रहे फिर।।

चारो ओर भयंकर अत्याचार दिखाई देते।
शहर-गाँव में भीषण नरसंहार दिखाई देते।।

भारतीय योद्धाओं ने पहले भी युद्ध लड़े थे।
इतने अत्याचार न पहले होते दीख पड़े थे।।

तिल-तिल कर मरवाये जाते थे रणवीर अभागे।
आम हो गए थे जौहर के दृश्य दृष्टि के आगे।।

शिशुओं को भालों के नेज़ों पर उछालते थे वे।
खड़ी फसल के साथ गाँव को जला डालते थे वे।।

उस कुसमय में बढ़ प्रताप ने पूजा थाल उठाया।
तब माँ ने भी झुका हुआ सदियों का भाल उठाया।।

दे अगणित आशीष शीश को स्नेहमयी ने चूमा।
रोम-रोम राणा प्रताप का आनन्दित हो झूमा।।

पगरज से कर तिलक वीर ने तब तलवार उठा ली।
कहा समझ ले मात, रात अब बीत चुकी है काली।।

माँ-बहनों की लाज न जीते जी मैं लुटने दूँगा।
और चोटियाँ भी न हिन्दुओं की मैं कटने दूँगा।।

तेरे सुत का देखेंगे अब कायर मुग़ल जड़ाका।
मैं बतलाऊँगा उनको क्या होता है रण साका।।

यही वचन राणा प्रताप आजीवन रहे निभाते।
भर देता है हृदय नाम जिव्हा पर आते-आते।।

सहे घाव पर घाव, घाव को भले न मिली दवाई।
कभी न झुक पाई लेकिन रण में तलवार उठाई।।

कभी न दरवाज़ा देखा अकबरशाही महलों का।
कभी न लगने दिया दाग़ भी घोड़ों पर मुग़लों का।।

ढहा दिया गढ़ आतताईयों के बलशाली डर का।
सपना पूरा कभी न होने दिया मुग़ल अकबर का।।
-
आदित्य तोमर
वज़ीरगंज, बदायूँ (उ.प्र.)

11:17 am

महाराणा प्रताप भारत का परमवीर बलिदानी - विकास भारद्वाज


महाराणा प्रताप भारत का परमवीर बलिदानी ।
दुश्मनों को मारा था लेकर नाम जय माँ भवानी ।।
चले राणा का चेतक सामने कोई रुक न सका ।
चली तेज तलवार तो गद्दार कोई टिक न सका ।।

अकबर ने खेली थी चाल हल्दीघाटी के मैदान ।
राजपूत, मनला दिये थे, धोखा युद्ध के दौरान ।।
कई हजार मुगलसेना से लोहा लिया था प्रताप ।
उठा भाला भोंगे तो अकबर का बड़ा रक्तचाप ।।

देशहित के लिए कभी जीते जी संधि नही की ।
वीरयोद्धा महाराणा ने गद्दारों को धूल चटा दी ।।
जिसने माटी की रक्षा से कभी सौदा नही किया ।
ऐसा महान प्रतापी राजा  वीर भूमि को जिया ।।

देशभक्त महाराणा जैसा दूसरा प्रताप नही हुआ ।
हल्दी घाटी का युद्ध मानों महाभारत युद्ध हुआ ।।
घास की रोटी खाकर भी देश के लिए लडते रहे ।
युद्ध के बाद अकबर की आँखों से भी आँसू बहे ।।

विकास भारद्वाज
बदायूँ
23 अप्रेल 2020 


बुधवार, 22 अप्रैल 2020

6:34 pm

एक थी बेगम : एक असफल बेगम की सफलता की कहानी है ये क्राइम सीरीज़

एक थी बेगम : एक असफल बेगम की सफलता की कहानी है ये क्राइम सीरीज़

मूल चित्र :- गूगल
     ट्रेलर : यूटयूब 

एक थी बेगम चौदह एपीसोड में जुर्म के दुनिया के बादशाहों के बीच में एक बेगम की कहानी है। जो एक-एक करके सारे बादशाहों को मात देती जाती है। 

एम मैक्स प्लेयर पर क्राइम कंटेट पर, भौकाल क्राइम सीरीज के बाद ,जो उत्तर प्रदेश के क्राइम पर आधारित थी, मुबंई के क्राइम पर आधारित एक सीरीज़ दो दिन पहले रिलीज हुई है एक थी बेगम। मुंबई जुर्म की कहानी सुनाती यह क्राइम सीरीज चौदह एपीसोड में जुर्म के दुनिया के बादशाहों के बीच में एक बेगम की कहानी है। जो एक-एक करके सारे बादशाहों को मात देती जाती है और सारे बादशाह एक-दूसरे से पूछते है, कौन है यह बेगम?

सचिन दारेकर के निर्देशन में इस बेव सीरिज की कहानी शुरू होती है ज़हीर(अंकित मोहन से) जो मकसूद भाई का बागी गैंगस्टर है, जो मुम्बई में ड्रग्स का कारोबार रोकने के लिए एक अलग गैंग बनाता है। जहीर के हाथों मकसूद भाई का काम देख रहे नाना(राजेंद्र शिष्टाकर) के भाई रघु को मार देता है। पहले पुलिस अधिकारी ताबड़े(अभीजीत च्वहाण) से ज़हीर को उठवाता है। ज़हीर अदालत से छूट जाता है और उसके बाद मकसूद भाई के कहने पर नाना और ताबड़े ज़हीर को मार देते हैं।

ज़हीर की पत्नी अशरफ(अनुजा साठे) पुलिस में रिपोर्ट से लेकर मीडिया तक सब जगह चली जाती है लेकिन उसके जाने का कोई फायदा नहीं होता है। अशरफ उसके बाद खुद बदला लेने का फैसला करती है। वह एक डांस बार में काम करने लगती है और जाल बिछाती है कि एक-एक कर सबको मौत के घाट उतार देती है।
मुम्बई जुर्म की दुनिया के इर्द-गिर्द एक नहीं कई कहानीयाँ कही जा चुकी हैं, पर उसमें न भूलने वाली कहानी कम ही है। उसमें किसी महिला को केंद्र में रखकर जो न भूलने वाली कहानी है वह मधुर भंडारकर कि फ़िल्म चांदनी बार जिसमें तब्बु की एक्टिंग को हमेशा याद किया जायेगा। उसके बाद हाल में रिलीज हुई हसीना पारकर, जो दशर्को के जेहन में है। एक थी बेगम की कहानी चांदनी बार के आस-पास नज़र आती है।

किरदारों का चयन इस सीरिज़ को देखने लायक बना सकता है। अगर सीरिज में मुबंई के भाषा पर मेहनत की जाती, तब शायद सारे किरदार कहानी के और करीब हो जाती। ज़हीर के किरदार में अंकित मोहन और नाना के किरदार में शिष्टाकर ने जो भूमिका निभाई है काबिले तारीफ है। तावड़े के किरदार में अभीजीत च्वाहण जो भी कमाल का काम किया है। इन सब के बीच अशरफ के किरदार में अनुजा साठे जो टीवी सीरियल बाजीराव से जाना पहचाना नाम है की अदाकारी थीड़ी निराश करती है।

14 एपीसोड में अशरफ के साथ कहीं भी आप इमोशनली अटैच नहीं कर पाते हैं। इसकी सबसे बड़ी वज़ह पटकथा और अशरश का अभिनय कहा जा सकता है। लेखक ने अशरफ का सफर को बहुत आसान कर दिया है। कहानी यह दावा करता है कि वह किसी सच्ची घटना पर आधारित है उसके बाद भी लेखक बेगम के रूप में अशरफ की कहानी कहने में डगममा जाते है।

सीरीज में एक मीडिया हाऊस को भी दिखाया गया है। एक पत्रकार जो कि पुलिस वालों के ख़िलाफ लिख रही है उसका कहना है कि वो अपने भाई का बदला ले रही है जिसका सीरीज में कुछ खास काम देखना को नहीं मिलता है। निर्देशक ने दुबई से लेकर मुम्बई की अच्छी लोकेशन का चुनाव किया है। कुछ सीन तो इतने असली लगते हैं कि फ़िल्म सत्या की याद दिला देते हैं।

एक थी बेगम की कहानी अपने पूरे कहानी में दो महिला पात्रों के साथ आगे आती है अशरफ और महिला पत्रकार, पर दोनों की बेगमों की कहानी कहने में डगमगा जाती है। यह कह सकते है कि एक थी बेगम की कहानी में भले ही बेगम बादशाहों की किले ध्वस्त कर देती है पर पूरी कहानी अपने महिला किरदारों के साथ वह न्याय नहीं कर पाती है जिसकी उम्मीद कहानी के शीषर्क से है।

लेखक : Prashant Pratyush
सम्पादक : www.womensweb.in
7:58 am

आक्रोश :- फख्र से उठती वर्दी का तुमने सिर गिरवाया हैं - सत्यदेव श्रीवास्तव

.#आक्रोश# 

फख्र से उठती वर्दी का तुमने सिर गिरवाया हैं 
वसन सिंह के लेकिन तुम पर गीदड़ का साया हैं 
सिंहो की टोली में तुम श्रगाल बने बैठे थे 
जो सबका हित चाहें उनका काल बने बैठे थे

अब तुमको जब सब सच्चा  इंसान मानते हैं 
वर्दी में छुपा हुआ तुमको भगवान मानते हैं 
ऐसे समय में तुमने खुद से ही गद्दारी की हैं 
लगता है तुमने जाहिल लोगो से यारी की हैं

करके गद्दारी तुम बच जाओगे ये सोचा हैं 
अरे जाहिलो बतला दो खुद को कितने में बेचा हैं 
बिषधर की भांति तुमने फिर से अब फुफकारा हैं 
लेकिन अबकी दिल्ली में बैठा मोदी बाप तुम्हारा हैं

मांबलिचिंग का रोना रोने वाले नहीं दिखाई दिये 
पुरस्कार लौटाने वाले स्वर भी नहीं सुनाई दिये 
देश फसा संकट में तुमने ये कैसा शोर मचा ड़ाला 
सर्वस्व त्यागने वाले को तुमने चोर बता ड़ाला

शासन प्रशासन क्यो ये सभी विवेक खो बैठे 
जिनको था रक्षक समझा वो ही भक्षक बन बैठे 
वीर शिवा की धरती पर कैसा कृत्य रचाया हैं 
देख तुम्हारी कायरता को बैरी मन में हर्षाया हैं

नही अगर सुधरे तो एक-एक कर छांटे जाओगे 
राष्ट्रद्रोहियो सुन लो बुरी तरह तुम काटे जाओगे 

सत्यदेव श्रीवास्तव
 बदायूँँ
 8630446679..8923088669

शनिवार, 18 अप्रैल 2020

7:15 am

नज़्म कहो कि जीना नज़्म है जीने की एक और रस्म है नज़्म कहो.... गुलज़ार साहब

नज़्म कहो कि जीना नज़्म है
जीने की एक और रस्म है
नज़्म कहो....

गुलज़ार साहब

Kavita Baisakhi 2020

Nazm kaho.....

Winners will be selected by Gulzar Sir.

First prize -  30000 rs.
Second     -   20000
Third.        -   10000

 5000 rs. to seven runner up poets.

Rules....

1.      Poetry can be written in any poetic style.
         रचना किसी भी रूप में हो सकती है - शेर, नज़्म, कविता
2.      Subject – Disability
         विषय- विकलांगता
3.      Language – Hindi and Hindustani, Roman Hindi.
          भाषा - हिंदी, हिंदुस्तानी या रोमन हिंदी
4.      Word Limit – 75 (Max)
         शब्द सीमा-75
5.      A poem in its entirety must be an original work by the person entering the contest.
         रचना पूरी तरह मौलिक होनी चाहिए
6.      The title of the poem should be given by the participant.
         कविता का शीर्षक रचनाकार को ही देना होगा
7.      You may enter any number of Poems, but may only win one prize.
         एक से अधिक रचनाएँ भी स्वीकार्य होंगी पर पुरस्कार  के लिए एक ही रचना चुनी जाएगी
8.      The contest is open to any age.
         कोई आयु सीमा नहीं
8.      Any one from any part of the world can participate in this online contest.
         विश्व से कोई भी अपनी कविता भेज सकता है
9.      Last date of submission is 20th April 2020. 
         रचना भेजने  की अंतिम तिथि  20  अप्रैल  2020

Sumbit your poem
Link
https://t.co/9SzBaDw3kY

Video created by : Vivek Singh
6:12 am

सरस्वती वन्दना :- शब्द के कुछ सुमन है समर्पित तुम्हे


शब्द के कुछ सुमन है समर्पित तुम्हे,
बस चरण में इन्हें अब शरण चाहिए ।
कण्ठ से फूट जाये मधुर रागनी,
गीत- गंगा में गोते लगता रहूँ।
स्वर लहर में रहे भीगते तेरे तन वदन,
शारदा मां भजन में लगन चाहिए ।
मिट सके तम के साये प्रखर ज्योति दो,
हंस वाहिनी शुभे शत् शत् नमन।
मां मेरी तुम से है यही  प्रार्थना कि
ध्यान में डूबकर गीत तेरे मैं गाता रहूं।
साधना की डगर हो सुगम मां यहां
तम विमल मन मगन गुनगुनाता रहूँ।
कल्पना के क्षितिज में नये बिम्ब हो,
चित्र जिनसे नये नित सजाता रहूँ।
*************************
कालिका प्रसाद सेमवाल

बुधवार, 15 अप्रैल 2020

4:03 am

मुकतक-राब्ता अपना दुआओं का असर

लगता है।।
राब्ता अपना दुआओं का असर 
लगता है।।
जाने क्यों तुझको मुझे खोने का डर
लगता है।।
बज्म मैं इक भी मिसरा ये नहीं 
कह पाता।।
है तो शायर ये मगर कितना डंफर
लगता है
अभिषेक जैन पथारिया दमोह मध्य प्रदेश
12:53 am

ग़ज़ल :- मुझे कहते रिश्ता निभाना भी है - खुशबू जैन

मुझे कहते रिश्ता निभाना भी है।
मगर दिल मेरा फिर दुखाना भी है।।

हुनर मुझको खोने का उसमे नहीं
मुझे छोड़कर उसको जाना भी  है।।

मुझे कहते हैं प्यार करता तुम्हें
मगर क्यों हमें आज़माना भी है।।

समझना जरूरी है जज्बात भी
अगर रूठे को फिर मनाना भी है।।

मेरी आँखों से नींद ले क्यों गए
क्या ऐसे ही दिल को सताना भी है।।

नहीं मुझमें हिम्मत कि सच बोल दूं
मगर तुमको सच तो बताना भी है।।

खुशबू

12:51 am

ग़ज़ल :- मेरे दिल में ये मुहब्बत सी खिली जाती है - खुशबू जैन

मेरे दिल में ये मुहब्बत सी खिली जाती है।
तेरे आने की जो उम्मीद जगी जाती है।।

हिज़्र में आपकी यूँ हाल हुआ है दिलबर
दिल तड़पता है मेरा, सांस रुकी जाती है।।

जानती हूँ नहीं तुम पास मेरे आओगे
मेरी उम्मीद तुम्हारी ही गली जाती है।।

पूछने आओगे क्या हाल है तुम्हारे बिन
मेरी आँखें तुम्हारी राह तकी जाती है।।

दूर "खुशबू" से तुम हुए को क्यों बताओ न
और तन्हाई मुझसे अब न सही जाती है।।

खुशबू
12:50 am

ग़ज़ल :- जमाने से खुद को बचाना भी है - खुशबू जैन

जमाने से खुद को बचाना भी है।
मगर आगे बढ़कर दिखाना भी है।।

भले फिक्र कल की बहुत है मगर
हरेक पल को हँसकर बिताना भी है।।

बुराई भी मिलनी ज़रूरी यहाँ
अगर तारीफों को जो पाना भी है।।

मुकद्दर से उम्मीदें रखते हो क्यों
कि कर्मों से भाग्य बनाना भी है।।

संभालो इसे ये जो जीवन मिला
तुम्हें तारों में चमचमाना भी है।।

डरे हम नहीं आंधियां कितनी हो
कि तूफानों में मुस्कुराना भी है।।

तेरा नाम "खुशबू" न रखा यूँ ही
फ़िज़ा में तुम्हें महक जाना भी है।।

खुशबू 

मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

6:58 am

बालकविता~"मेरे प्यारे-प्यारे पापा - दिलीप पाठक

मुझे दिखाओ मेला पापा|
वहाँ दिलाना केला पापा||

झूलूँगा मैं झूला पापा|
झूला फूला-फूला पापा||

बाइक पर बैठाओ पापा|
जल्दी से ले जाओ पापा||

कपड़े तो हो पहने पापा|
लगते हो क्या कहने पापा||

कर ली सब तैयारी पापा|
मइया की बलिहारी पापा||

लेना खेल खिलौने पापा|
लगते बड़े सलौने पापा|

मेरे प्यारे -प्यारे पापा|
सारे जग से न्यारे पापा||

दिलीप कुमार पाठक "सरस"


5:23 am

ग़ज़ल :- तिरी दामन बचाने की ये आदत भी अदावत है - प्रदीप ध्रुव


वज़्न-1222-1222-1222-1222-मफाईलुन, मफाईलुन, मफाईलुन, मफाईलुन
***   ****   ****   ***   **  **
तिरी दामन बचाने की ये आदत भी अदावत है।
मिला कर जोर से खुलकर तिरी ही बादशाहत है।-01
*
नहीं ले कुछ भी आया है न ले कर कुछ भी जाएगा,
जिया कर बादशाहों की तरह ये ही इबादत है।-02
*
बहुत मसले जहां में हैं न इनकी तू वकालत कर,
मसीहा बन यतीमों का दुआओं से ही राहत है।-03
*
यहीं ज़न्नत यहीं दोज़ख़ किया महसूस जो हमने,
हंसाया कर किसी भी शख़्स की ये ही तो चाहत है।-04
*
नहीं इंसानियत का इल्म भी हांसिल किया जिसने,
यकीं माने खुदा के इस जहां की ये ख़िलाफत है।-05
*
न सीरत और सूरत हो भले,ईमान हो कायम,
अगर ईमान कोसों दूर हट जाती क़यामत है।-06
*
जियें खुलकर सुखनवर की यही तो है निशांदेही,
हंसी चहरा इरादे नेक ही सच्ची अमानत है।-07
***
★★★  ★★★  ★★★  ★★
स्वरचित,कापीराइट,ग़जलकार,
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.08/01/2020
मो.09589349070
★★★  ★★★  ★★★  ★★

5:22 am

ग़ज़ल :- हवाले आग के गफलत में करते जा रहे वो - प्रदीप ध्रुव


वज़्न-1222-1222-1222-122
मफाईलुन, मफाईलुन, मफाईलुन, फऊलुन.
***
हवाले आग के गफलत में करते जा रहे वो।
न हो जाएं खुदी नीलाम डरते जा रहे वो।-01
*
अमन की बात करते वो रहे दिल बेरहम रख,
समझ आया हमारे अब हैं फंसते जा रहे वो।-02
*
वहां रख माल होना चाहते क़ाबिज कहीं पे,
सिकंदर की अदाकारी में ढलते जा रहे वो।-03
*
किसी की हैंसियत पर अश्क़  ये अच्छा न होगा,
उन्हीं के खंदकों में आज धंसते जा रहे वो।-04
*
किसी के दौर की बातें मुनासिब तो नहीं अब,
गिराने की है ख़्वाहिश खुद ही गिरते जा रहे वो।-05
*
तमन्ना ये हिला डालें जहां करते मुक़र्रर,
खुदी की हरक़तों में आज घिरते जा रहे वो।-06
*
अदाकारी समझ में आ रही "ध्रुव" की सभी के,
करेंगे चोंट गुपचुप आज,कहते जा रहे वो।-07
*
***   ****   ****  ***  ***  **
स्वरचित,कापीराइट,ग़ज़लकार,
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.09/01/2020
मो.09589349070
***  ****  ****  ***  ***  ****
5:21 am

ग़ज़ल :- खुशी का कोई लम्हा याद रखना है - प्रदीप ध्रुव


वज़्न-1222-1222-1222,
मफाईलुन, मफाईलुन, मफाईलुन.
****  ***  ***  ***  ***  ****
खुशी का कोई लम्हा याद रखना है।
नहीं दिल में कोई फ़रियाद रखना है।-01
*
खुशी के और भी मौके मिलें शायद,
अमानत यार की आबाद रखना है।-02
*
कहीं पे डूबकर यादें सहेजेगे,
हमारी दोस्ती नाबाद रखना है।-03
*
भले हो गैर पर इतना मगर करना,
करे नेकी तो दिल से दाद करना है।-04
*
ख़बर मनहूसियत की ना सुनाए वो,
वज़ह ये है उसे तो शाद करना है।-05
*
सुखाकर खूं वो लिखता शायरी इससे,
हमारा फ़र्ज़ है इरशाद करना है।-06
*
शहीदी का जिसे जामा मिला होगा,
तहेदिल से कि ज़िंदाबाद करना है।-07
***
★★★  ★★★  ★★★  ★★
स्वरचित,कापीराइट,ग़ज़लकार,
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.09/01/2020
मो.09589349070
★★★  ★★★  ★★  ★★★
5:19 am

ग़ज़ल :- रूबरू ना मिल सकें तो काल होना चाहिए - प्रदीप ध्रुव


वज़्न-2122-2122-2122-212
अर्कान-फाइलातुन,फाइलातुन
,फाइलातुन,फाइलुन
***   ***   ***  ***   ***   ***
रूबरू  ना  मिल  सकें  तो काल होना चाहिए।
बात का इक सिलसिला हर हाल होना चाहिए।-01
*
हाय कोई शख़्स कैसे यार बिन भी रह सके।
दौर लम्बा गर चले बदहाल होना चाहिए।-02
*
हो रक़म ज़्यादा भले कम फ़र्क इससे है नहीं,
इश्क़ 
पर मुहब्बत से नहीं कंग़ाल होना चाहिए।-03
*
चाहतें हो ग़र किसी से तो चले फिर सिलसिला,
ग़र न मुमकिन इश्क़ का ये जाल होना चाहिए।-04
*
मानिए भी यार है पर दूरियां भी वो रखे,
हरक़तें ये आंख अपनी लाल होना चाहिए।-05
*
ये उन्हें पैगाम है "ध्रुव" दूरियां ही अब रखें,
ये न कोई दोस्ती जंजाल होना चाहिए।-06
***   ***   ***
★★★★★★★★★★★★
स्वरचित,कापीराइट,ग़ज़लकार,
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.12/01/2020
मो.09589349070
★★★★★★★★★★★★
5:16 am

★★★गीत-अंजुरी भर★★प्रदीप ध्रुव★


भावनाओं ने कहा तो अंजुरी भर गीत ले कर आ रहे हम।
विघ्न भी हैं सघन राह में निशिचर खड़े आघात को तम।
*
संगठित निशिचर हुए और भद्रजन में द्वेष है।
बुद्धि का अभिमान अतिशय नेह न अब शेष है।
भावनाएँ शून्य हैं अब वो स्वयंभू बन गये खुद,
बुद्धि का वो आचमन हैं दे रहे अतिशेष है।
दैव होने का है किंचित भाव उनको हो रहा भ्रम।-01
*
इन्द्र सम है आचरण पग हैं भ्रमित पावन बने ग़ुलनाग से।
मेनकाएँ और रम्भा की शरण में प्रेमरस हैं पी रहे अनुराग से।
मिल चुका आशीष सत्ता की शरण में गोद बैठे दिख रहे,
लिख रहे नूतन कथानक स्वर्ग सुख ज्यों खेलते वो फाग से।
चल रहा अनुकूल मौसम जा चुका अब जो रहा कल तक विषम।-02
*
आज प्रतिभा है उपेक्षित गढ़ रहे नूतन नवल प्रतिमान हैं।
नीतिगत मत पूँछिए जो वो कहें तो मानिए इंसान हैं।
टकटकी हम हैं लगाए आश जागी अंजुली भर आचमन की,
दैव समझा मतिभ्रमित खुद को नहीं वो मानते इंसान हैं।
कालजय की राह में वो जा रहे मुझको गिराकर है वहम।-03
*
★★★★★★★★★★★★
स्वरचित कापीराइट गीतकार,
प्रदीप ध्रुवभोपाली, भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.11/12/2019
मो.09589349070
★★★★★★★★★★★★
5:15 am

ग़ज़ल :- तू खुदा तो नहीं पर इनायत किया कर - प्रदीप ध्रुव


वज़्न-212-212-212-212,2
***
तू खुदा तो नहीं पर इनायत किया कर।
बावफा रह,न कोई बग़ावत किया कर।-01
*
यार है यार मानिन्द रुख चाहिए,
दुश्मनो की न कोई वकालत किया कर।-02
*
ख़ास दिखता रहा ख़ास वो है नहीं,
अर्ज़ उससे करें, ना अदावत किया  कर।-03
*
तू फ़रेबी हुआ और मक्कार भी
भूल कर यार से ना अदालत किया कर।-04
*
आसमाँ की तरह हौसला हो भले,
रह अदब से,नहीं तू जलालत किया कर।-05
*
यार ने रख यकीं मिल्कियत सौंप दी,
ना गला.घोंट ना ही खयानत किया कर।-06
***
★★★★★★★★★★★★
स्वरचित,कापीराइट,ग़ज़लकार,
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.19/01/2020
मो.09589349070
★★★★★★★★★★★★
5:14 am

ग़ज़ल :- लिफाफा बंद उनके नाम का पैगाम लिक्खा है - प्रदीप ध्रुव


वज़्न-1222-1222-1222-1222,मफाईलुन×4
***  ***  ***  **   ***   **  **
लिफाफा बंद उनके नाम का पैगाम लिक्खा है।
खयालो में वही आते सुबह से शाम लिक्खा है।-01
*
हुई थी दोस्ती इक दिन निहायत हादसे माफिक़,
वही था दौर इस दिल में तिरा ही नाम लिक्खा है।-02
*
अमानत छोड़ मेरे पास दिल की भूल वो बैठे,
वो ले जाएं किराए बिन,भी है आराम लिक्खा है।-03
*
जलाते हैं चरागा नाम से जिनके वो क्या जानें,
इबादत भी करें उनकी ज़रूरी काम लिक्खा है।-04
*
ग़ुनाहों में नहीं ग़र ख़ास भी माना किसी को तो,
मिरे दिल में कि उनका नाम चारों धाम लिक्खा है।-05
*
करें बेइंतहा भी इश्क़ ये उसको पता भी हो,
पता मेरा सुनो अब यार "ध्रुव" गुमनाम लिक्खा है।-06
*
★★★★★★★★★★★★
स्वरचित,कापीराइट,ग़ज़लकार,
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.20/01/2020
मो.09589349070
★★★★★★★★★★★★
5:12 am

ग़ज़ल :- उनकी दुकां हुई जो बंद ये सवाल है - प्रदीप ध्रुव


वज़्न-221-212-221-212-12/
मफ़ऊल,फाइलुन, मफऊल,फाइलुन,फआ,

उनकी  दुकां  हुई  जो बंद ये सवाल है।
इस बात के लिए ही मुल्क़ में बवाल है।। 
*
जिस बात का वो माइना ही जानते नहीं,
उसकी ख़िलाफ़तो में हैं ये तो कमाल है।-02
*
हिन्दू मुसलमां बीच नफरत के बीज बो,
हासिल करेंगे कुर्सियां असली ये हाल है।-03
*
ये मुल्क़ भी जले मगर उसका निज़ाम हो,
इस वास्ते ही हो रहा सारा बवाल है।-04
*
सामंतवाद फिर चले वो इस फ़िराक़ में,
ज़म्हूरियत हटा के लूट का ख़याल है।-05
*
जो राजशाही छिन गई तो हांथ मल रहे,
वो अब भी कह रहे कि मुल्क़ उनका माल है।-06
*
उनकी लगाई आग में ये मुल्क़ जल रहा,
ताज़ुब है रत्ती भर नहीं उनको मलाल है।-07
*
★★★★★★★★★★★★
स्वरचित,कापीराइट,शायर, प्रदीप
ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.22/01/2020
मो.9589349070
★★★★★★★★★★★★
5:11 am

★★गीत-प्रीति न कीजिए★★ प्रदीप ध्रुव


प्रीति न कीजिए,है अदावत बहुत।
प्रीति है अब सियासी बग़ावत बहुत।
*
मुख में अमृत है,दिल में ज़हर जो भरा।
खोट वाले हैं मिलते,न मिलता खरा।
अब कहीं नहिं मिलेगी शराफत बहुत।
प्रीति है अब सियासी बग़ावत बहुत।-01
*
आज मिलते बहुत जो दग़ाबाज़ हैं।
काक हैं गिद्ध हैं वो कहें बाज़ हैं।
आचरण से कहें है शिकायत बहुत।
प्रीति है अब सियासी बग़ावत बहुत।-02
*
जो मिले लूट लें,ऐसे बटमार हैं।
कालनेमि के वो तो कि अवतार हैं।
नहिं करे छलियों से हम शराफत बहुत।
प्रीति है अब सियासी बग़ावत बहुत।-03
*
★★★★★★★★★★★★
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.24/01/2020
मो.09589349070
★★★★★★★★★★★★
5:10 am

★गीत-लहरा लो तिरंगा प्यारा★प्रदीप ध्रुव


तिरंगा पे हुए क़ुर्वान, शहीदों की अमानत है।
तिरंगा प्यारा लहरा लो,नहीं करना बग़ावत है।
*
न जाने कितनी माताओं की गोद भी हुई सूनी।
सुहागें उजड़ी बहनों की,गम बरसात भी दूनी।
शहीदों ने दी आज़ादी, हमें रखना सलामत है।
तिरंगा प्यारा लहरालो,नहीं करना बग़ावत है।-01
*
हुए आज़ाद पर इस मुल्क़ की बाहें कटी फिर जब।
सभी रोयें थे जब उन्मादियों में हवस आई तब।
लुटी थी लाज़ अपनों से,तो फिर रोई शहादत है।
तिरंगा प्यारा लहरालो,नहीं करना बग़ावत है।-02
*
कटे सर लाश रेलों में,पेशावर से इधर आई।
लिखा आज़ादी का तोहफ़ा,नहीं उनको शर्म आई।
चुकाया मोल है जिसका,उस आज़ादी से राहत है।
तिरंगा प्यारा लहरालो,नहीं करना बग़ावत है।-03
*
नहीं कोई था मज़हब तब कहलाते थे बलिदानी।
लड़ी थी ज़ंग़ मिलकर तब, नहीं की कोई नादानी।
बहे आंसू थे बलिदानों से,लेकिन दूर आफ़त है।
तिरंगा प्यारा लहरालो, नहीं करना बग़ावत है।-04
***
★★★★★★★★★★★★
स्वरचित,कापीराइट,गीतकार,
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.25/01/2020
मो.09589349070
★★★★★★★★★★★★
5:08 am

ग़ज़ल :- बवंडर लग रहा होगा ये इम्तेहान थोड़ी है - प्रदीप ध्रुव


बवंडर लग रहा होगा ये इम्तेहान थोड़ी है।
उसे भी तो पता होगा कि वो नादान थोड़ी है।-01
*
हुआ था कल जो बंटवारा उसी का है नतीज़ा ये,
हमारा है रहेगा भी ये पाकिस्तान थोड़ी है।-02
*
बहाकर खूं मिला हमको शहीदों की अमानत ये,
ये हिन्दोस्ताँ हमारा लूट का सामान थोड़ी है।-03
*
वहम कोई नहीं पाले मिलेगा एक क़तरा भी,
न मुमकिन है किसी हालात पे आसान थोड़ी है।-04
*
किसी फ़िरकापरस्ती से दफ़ा इक मुल्क़ बंट जाए,
जो पूरा हो सके ऐसा कि ये अरमान थोड़ी है।-05
*
किसी शैतान का पैगाम तामीली में आ जाए,
जहां मे ये नहीं मुमकिन भी वो भगवान थोड़ी है।-06
****
★★★  ★★★  ★★★ ★★
स्वरचित,कापीराइट,ग़ज़लकार,
दिनाँक.25/12/2019
मो.09589349070
★★★  ★★★  ★★  ★★★
5:07 am

गीत-उपवन और झरने - प्रदीप ध्रुव


***
गीत उपवन और झरने नदी बह रही।
गीत पर्वत सदृश ये सदी कह रही।
*
पीर है इक सदी की जो संभाब्य है।
ये तो वृत्तांत लघु में महाकाव्य है।
गीत सुर में जो ढलती मचलती हुई,
गीत वो धूप और स्वेद का काब्य है।
गीत है जो ब्यथा ज़िन्दगी सह रही।
गीत पर्वत सदृश ये सदी कह रही।-01
*
गीत अल्लढ़ मचलती नदी धार है।
गीत केवट की अनुपम वो पतवार है।
जो लगा दे कि उस पार ये ज़िन्दगी,
गीत वो सौम्य नाविक की मनुहार ही।
काब्य की धार उर में है जो बह रही।
गीत पर्वत सदृश ये सदी कह रही।-02
*
गीत जो जो किला लाल बिन चल रही।
गीत मज़दूर कवि के हृदय पल रही।
गीत आभार है इस वतन के लिए,
राष्ट्र के भक्त उनके हृदय ढल रही।
अब बचाओ भी मर्यादा जो ढह रही।
गीत पर्वत सदृश ये सदी कह रही।-03
*
गीत कविता का ब्यापार बिल्कुल नहीं।
मात्र प्रियतम का मनुहार भर ये नहीं।
गीत है लोरियाँ माँ की वात्सल्य मय,
गीत जीवन का आसार भर ये नहीं।
ये सदृश जो विहंगम सरित बह रही।
गीत पर्वत सदृश ये सदी कह रही।-04
*
गीत टूटे हुए दिल का आसार है।
सुख की अनुभूति का गीत आगार है।
जो चरम कल्पनाओं में हो अग्रसर,
सृष्टि और ज़िन्दगी का परम सार है।
गीत है अस्मिता उर में जो रह रही।
गीत पर्वत सदृश ये सदी कह रही।-05
***
★★★  ★★★  ★★★  ★★
स्वरचित,कापीराइट,गीतकार,
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.27/01/2020
मो.09589349070
★★★★★★★★★★★★
5:06 am

ग़ज़ल :-ग़रीबों पे ग़ज़ल है ये निहायत दास्तां उनकी - प्रदीप ध्रुव


वज़्न-1222×4,मफाईलुन×4
***
ग़रीबों पे ग़ज़ल है ये निहायत दास्तां उनकी।
बयां करते फटेहालात जो है खामखां उनकी।-01
*
यतीमों पे ग़ज़ल है तो उन्हीं के नाम से होगी,
न हो क्यों ये हिफाज़त भी करे वो बागवां उनकी।-02
*
यतीमों ने है फरमाया यकीं उनको खुदा पे है,
दुआ मांगे न चाहत में रहा है आसमां उनकी।-03
*
बड़े ईमान वाले हैं खुदा कहता यही बहतर,
गिला इस बात की ना कद्र कर पाए जहां उनकी।-04
*
ग़ुमां पाले जमाना "ध्रुव"नहीं कुछ संग में जाना,
रुकी सांसें नहीं फिर काम आती है फ़िजां उनकी।-05
***
★★★★★★★★★★★★
स्वरचित,कापीराइट,ग़ज़लकार,
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.28/01/2020
मो.09589349070
★★★★★★★★★★★★
5:05 am

ग़ज़ल :- ये प्यार भी मुक़म्मल मिलता नहीं सभी को - प्रदीप ध्रुव


वज़्न-2212-1222-2121-22
***
ये प्यार भी मुक़म्मल मिलता नहीं सभी को।
चाहत खिला हुआ ग़ुल  मिलता नहीं सभी को।-01
*
बेज़ार हो चला वो गम की तपिश हुई जब,
रौशन हुआ मगर दिल मिलता नहीं सभी को।-02
*
आशिक़ रहा फ़िजां का इंसानियत नहीं की,
गम है मिला मुसलसल मिलता नहीं सभी को।-03
*
आना बहार थी पर गम की तपिश मिली है,
मानिन्द उनके भी फल मिलता नहीं सभी को।-04
*
ये वक़्त भी उठा औ देता उतार सबको,
हों रास्ते ज़ुदा हल मिलता नहीं सभी को।-05
*
आसां नहीं जगह भी दिल में बना सकें हम,
कोई मिला है हरदिल मिलता नहींं सभी को।-06
*
बेखौफ जी सकें "ध्रुव" अरमां रहा सभी का,
सब कुछ रहे मुक़म्मल मिलता नहींं सभी को।-07
***
★★★★★★★★★★★★
स्वरचित,कापीराइट,ग़ज़लकार,
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.29/01/2020
मो.09589349070
★★★★★★★★★★★★
5:00 am

ग़ज़ल :- जिनके खातिर भी हमने लुटा जान दी - प्रदीप ध्रुव


वज़्न-2222-1221-2212
***
जिनके खातिर भी हमने लुटा जान दी।
उनने भी तो मुझे मौत आसान दी।-01
*
ये है आसां नहींं दोस्त हरदम रहे,
दोस्त कल का मिटा दे मुझे ठान दी।-02
*
मैं ही पागल रहा यार माना उसे,
उसने दी चोंट मैने मेरी जान दी।-03
*
कब है आया फरेबी किसी काम पे,
उसने ही तो सभी कुछ हलाकान दी04
*
चलते चलते पहुँच है गये मोड़ पे,
उसने तो मार किश्तो में आसान दीँ।-05
*
ऐसा जायज़ नहींं ज़िन्दगी में कभी,
उसने मंदिर में कर्कश भरी तान दी।-06
*
होती आसां नहीं मौत या ज़िन्दगी,
रब ने तक़दीर "ध्रुव" को बियाबान दी।-07
***   ****   ****   ***    *****
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल म.प्र.
दिनाँक.30/01/2020
मो.09589349070
★★★★  ★★★   ★★★★
4:59 am

गीत :-खुशियाँ ज़िन्दगी की - प्रदीप ध्रुव


मात्राभार-14-14
***
खूटियों पर टाँग खुशियाँ,हो गये परिवार के हम।
चैनसुख भूले सभी कुछ,बन मुसाफ़िर ख़ार के हम।
*
भूल हम बैठे स्वयं को,कर्मपथ चलते रहे बस।
त्याग का पर्याय देखा,आँख सब मलते रहे बस।
हम हुए हैं शून्य संग,साक्षवत संसार के हम।
चैनसुख भूले सभी कुछ,बन मुसाफ़िर खार के हम।-01
*
डूबकर संसार में हम,पी रहे सबका जो गम था।
आँसुओं से तरबतर थे,बाँट डाला जो सितम था।
हम बने कर्तव्य पालक,साक्ष्य थे अधिकार के हम।
चैनसुख भूले सभी कुछ,बन मुसाफ़िर खार के हम।-02
*
पर मिला निष्कर्ष ये भी,फल नहीं मिलता यहाँँ छल।
आज में जीते नहीं हम,और है आता नहींं कल।
यत्न नाहक क्यों करें गम,मोहरे ब्यापार के हम।
चैनसुख भूले सभी कुछ,बन मुसाफ़िर खार के हम।-03
*
आचमन पीते रहे हम,संग पिया हमने सितम है।
भाग्य से मिलता रहेगा,दिल में जो आया वहम है।
रात पूनम की अँधेरा,पर तमस में ही रहे हम।
चैनसुख भूले सभी कुछ,बन मुसाफ़िर खार के हम।-04
*
★★★★★★★★★★★★
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.31/01/2020
मो.09589349070
★★★★★★★★★★★★
4:57 am

ग़ज़ल :- यादों के साये ज़िन्दगी ग़ुज़ार लेंगे हम- प्रदीप ध्रुव


यादों  के  साये  ज़िन्दगी  ग़ुज़ार  लेंगे हम।
पहले  जो  हो  गई  ख़ता  सुधार  लेंगे हम।-01

उनपे  दीवानगी   हुई  बेइंतहा  मुझे,
चाहत  है  उनका  प्यार  भी  उधार लेंगे  हम।-02

आवारगी  है  हिज़्र  में  हम  बेखबर हुए,
यादों  में  आपके  ये  दिन  ग़ुज़ार  लेंगे हम।-03

तनहाइयाँ  तो  ज़िन्दगी  में  हमसफ़र   हुईं,
यादों  में  उनका  अक्स  भी  उतार लेंगे  हम।-04

मुमकिन  भले  आसाँ  नहीं  सब बेशुमार  हो,
मंज़िल  न  आए  हाँथ  में  बिसार  लेंगे  हम।-05

ग़ुमनाम  अपनी  ज़िन्दगी  जो  अब  तलक  रही,
कुछ  फूल  भी  रखें  उधार  ख़ार  लेंगे हम।-06

★★★★★★★★★★★★
कवि शायर प्रदीप ध्रुवभोपाली,
भोपाल,दिनाँक.10/06/2019
मो.9893677052/9589349070
★★★★★★★★★★★★

4:55 am

ग़ज़ल :- जब से रुखसत हुआ दिलरुबा नही आया - प्रदीप ध्रुव


जब से रुखसत हुआ दिलरुबा नही आया ।
जाने  क्या कुछ  हुआ  महरवाँँ नहीं आया ।।-01
*
हमने मागा सुकून था उससे मगर वो तो
बदला मौसम कभी कहकशां नहीं आया।-02
*
दे के सपने गया बहुत से मगर अब तक,
वो है ज़ालिम मिरा हमनवां नहीं आया।-03
*
मेरा माशूक दे के तड़प गया जब से,
उसके मानिन्द कोई ज़वां नहीं आया।-04
*
कबसे हाथों हिना सजाई हुई आखिर,
कैसा ज़ालिम मिरा नौज़वां नहीं आया।-05
*
रो के होने लगे अश्क़ "ध्रुव" ख़त्म अब तो,
मेरे दिल का हसीं बागवां नहीं आया।-06
***
****   ****  ***  ***  ***  ***
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.07/02/2020
मो.09589349070
★★★  ★★★  ★★★  ★★
4:53 am

गीत :-प्रेम क्या है - प्रदीप ध्रुव


प्रेम क्या है सुनो साथियों, प्रेयसी का मिलन साज है।
मीरा ने ज्यों किया कृष्ण से,बस वही नेक अंदाज़ है।
*
राग है रागिनी प्रेम स्वर,माँ का वात्सल्य शुचि प्रेम है।
राखियों में पगा प्रेम है,करती वो जो बहन नेम है।
ईश की साधना प्रेम है,मर्म या हम कहें राज है।
मीरा ने ज्यों किया कृष्ण से,बस वही नेक अंदाज़ है।-01
*
भ्रात का प्रेम अनुपम भरत,
लक्ष्मण का वो वनवास है।
जो सखी के मिलन के लिए,मन में जगती हुई आश है।
प्रेम निकले हृदयतल से जो,नेह की एक आवाज है।
मीरा ने ज्यों किया कृष्ण से,बस वही नेक अंदाज़ है।-02
*
प्रेम निर्बल नहीं है सबल,प्रेम तो एक आकाश है।
प्रेम संभावना सिद्धि की,ये भगीरथ की अभिलाश है।
प्रेम जो प्रेयसी के लिए,हद पे जाने का आग़ाज़ है।
मीरा ने ज्यों किया कृष्ण से,बस वही नेक अंदाज़ है।-03
*
बिन बताये जो मन जान ले,प्रेम पावन सा एहसास है।
हो कर जो न घटे फिर कभी,प्रेम मन का ये विश्वास है।
प्रेम का राज हरदम रहा,प्रेम सदियों से था आज है।
मीरा ने ज्यों किया कृष्ण से,बस वही नेक अंदाज़ है।-04
***
★★★★★★★★★★★★
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.16/02/2020
मो.09589349070
★★★★★★★★★★★★
4:52 am

गीत :-खुशबुओं की तरह - प्रदीप ध्रुव


खुशबुओं की तरह हम बिखरते रहे,
दिल में सबके मगर हम उतरते रहे।
वक्त के जो थपेड़े पड़े हम पे हैं,
उससे ज़्यादा और हम निखरते रहे।
*
कभी गुल सरीखे सजाये गये,
सजावट  से फिर हम हटाये गये।
कभी दौर था जब रहे अर्श पे हैं,
सरताज़ भी हम बनाये गये।
वही दौर था शेर मानिन्द हम या,
सदर की तरह हम ग़ुज़रते रहे।
वक़्त के जो थपेड़े पड़े हम पे हैं,
उससे ज़्यादा और हम निखरते रहे।-01
*
वक्त बदलाव का नाम है ज़िन्दगी,
ज़िन्दगी ने हमें आजमाया बहुत।
जब रहे अर्श पे तो हँसे भी बहुत,
ज़िन्दगी ने मगर फिर रुलाया बहुत।
हार माने नहीं तय हुई मंज़िलें,
अश्क़ संग और भी हम सँवरते रहे।
वक़्त के जो थपेड़े पड़े हम पे हैं,
उससे ज्यादा और हम निखरते रहे।-02
*
बात ईमान की और अदब संग चले,संग मेरा मुश्किलों नें निभाया बहुत।
कुछ मिले कालनेमि मगर राह पे,
बच निकलते रहे,पर लुभाया बहुत।
जब चले तो चले फिर रुके ही नहीं,देखने को असलियत ठहरते रहे।
वक्त के जो थपेड़े पड़े हम पे हैं,
उससे ज़्यादा और हम निखरते रहे।-03
*
टिमटिमाता दिया जल रहा अनवरत,कोशिसें आँधियों की बुझा न सके।
गर्त में डालने की रहीं कोशिसें,
उनके फन कुचला सर वो उठा न सके।
हम कभी टूटते नाम उसका नहीं,
मेरे अरमां और भी मचलते रहे।
वक्त के जो थपेड़े पड़े हम पे हैं,
उससे ज़्यादा और हम निखरते रहे।-04
***
★★★★★★★★★★★★
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.17/02/2020
मो.09589349070
★★★★★★★★★★★★
4:51 am

गीत :- शान तिरंगा - प्रदीप ध्रुव



सैनिक बोला माटी चंदन,मान तिरंगा है,मेरी शान तिरंगा है।
जान लुटाकर शान बचायें,जिसमें जाँ बसती,वोअरमान तिरंगा है।
*
पूजन करते हम माटी का,माँ की शान बढ़ाते हैं।
एक नहीं हम शीश हजारों, माँ को रोज़ चढ़ाते हैं।
नहीं तिरंगा झुकने दें हम,इसका पूजन करते,पावन यमुना गंगा है।
सैनिक बोला माटी चंदन,मान तिरंगा है,मेरी शान तिरंगा है।-01
*
संकट में हो जान मगर,हम फ़र्ज़ निभाते हैं।
दुश्मन को हर हाल में,हम तो धूल चटाते हैं।
जिसके बिना नहीं जी पायें,जोश चढ़ाये रग रग में वरदान तिरंगा है।
सैनिक बोला माटी चंदन,मान  तिरंगा है,मेरी शान तिरंगा है।-02
*
जान लुटायें जब सैनिक,ये लिपट बहुत रोये।
अर्थी के संग सज़ा तिरंगा,निज आपा खोये।
बीत रही क्या सैनिक माँ पे,और बहन पे,नहीं अंजान तिरंगा है।
सैनिक बोला माटी चंदन,मान तिरंगा है,मेरी शान तिरंगा है।-03
*
जोश हमें देता दुश्मन को धूल चटाते हैं।
दुश्मन का सर काट हजारों,माँ पे चढ़ाते हैं।
देश से बढ़कर तीन रंग ध्वज,छू ले दुश्मन,नहीं आसान तिरंगा है।
सैनिक बोला माटी चंदन,मान तिरंगा है,मेरी शान तिरंगा है।-04
***
★★  ★★  ★★  ★★  ★★
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.18/02/2020
मो.09589349070
★★  ★★  ★★  ★★  ★★
4:50 am

ग़ज़ल :- हादसा है ज़िन्दगी ये मौत भी इक हादसा है - प्रदीप ध्रुव

बह्र/अर्कान-2122×4,फाइलातुन×4
★★★★★★★★★★★★

हादसा है ज़िन्दगी ये मौत भी इक हादसा है।
चाह बिन जीना यहाँ मरना यहाँँ भी खाँमखा है।-01

हौंसला मुझमे दिखा जाँवाज थे हम नामवर भी,
एक ही आवाज़ में पीछे चला फिर कारवां है।-02

रौब वाला वो रहा कहते रहे उसको फ़लक सब,
जब सितारे ग़र्दिशों में कौन कहता आसमां है।-03

आरज़ू को ज़ुस्तज़ू में जो करे तब्दील कहते,
सब यही आसाँ नहीं ये इस जहाँ का बागवां है।-04

ऐ खु़दा मेरे लिए इंसानियत है फ़र्ज़ जायज,
हमवतन से हम निभाते यूँ कि वो बस हमनवां है।-05

मुफ़लिसों के जब मसीहा हम बने सब ने कहा ये,
आज भी इंसानियत का दौर "ध्रुव" कह लो ज़वां है।-06

★★★★★★★★★★★★
कवि शायर प्रदीप ध्रुवभोपाली
भोपाल,दिनाँक.21/02/2019
मो.09589349070
★★★★★★★★★★★★
4:48 am

ग़ज़ल :- मसाइल बहुत से खुराफ़ात वाले - प्रदीप ध्रुव

★★★★★ग़ज़ल★★★★★
बह्र/अर्कान-122×4
***
मसाइल बहुत से खुराफ़ात वाले।
सियासी इनायत करामात वाले।।
*
सियासी एजेण्डे छुपे तौर चलते,
मुल्क़ तोड़ दें यार हालात वाले।
*
बहाना जिन्हें चाहिए हरक़तों का
दिखें दिन में कुछ और कुछ रात वाले।
*
पिलाया जिन्हें दूध सत्तर बरस से
फ़सादात के हैं वो सौगात वाले।
*
हलाकान जिनने किया मुल्क़ अब तक
नहीं दम मगर "ध्रुव" बड़ी बात वाले।
*
***  ***   ***   ***   ***   ***
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.26/02/2020
मो.09589349070
***  ***   ***   ***  ***  ****
4:47 am

ग़ज़ल :- आँँसू बहे जो रात भर तो बन गई ग़ज़ल - प्रदीप ध्रुव

*******ग़ज़ल*******
बह्र/अर्कान-2212-2212-2212-12
******************************
आँँसू बहे जो रात भर तो बन गई ग़ज़ल।
ये ज़िन्दगी में ज़ख्म आये तन गई ग़ज़ल।
*
दो पल खुशी की ज़िन्दगी ख़ारों भरा सफ़र,
दिन काटने की बात आयी ठन गई ग़ज़ल।
*
जाती रही है नींद वो जबसे जुदा हुए,
बहते हुए जो आंसुओं से सन गई ग़ज़ल।
*
ठोकर लगी तो  सांच क्या मालूम ना हुआ,
करने पता क्या माजरा मधुवन गई ग़ज़ल।
*
सारा फरेबी है जहां शिकवा करें कहां,
सरपंच अलगू मिल गये आंगन गई ग़ज़ल।
*
आशिक़ हुए थे यार के धोखा मिला जिन्हें,
बेचैनियों में *ध्रुव* सुनो लन्दन गई ग़ज़ल।
***
++++++++++++++++++++++++++
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल, मध्यप्रदेश
दिनांक-22/03/2020
मो.09589349070
*********************************
3:55 am

ग़ज़ल :- है छेद सफ़ीना में इल्ज़ाम समंदर पे - प्रदीप ध्रुव


है छेद सफ़ीना में इल्ज़ाम समंदर पे।
बदनाम हुए खुद वो इल्ज़ाम मुकद्दर पे।
*
गुमनाम रहे कबसे अश़आर नहीं आये,
बन के वो मिलें ग़ालिब भटके जो गली दर पे।
*
सामान बहुत कम था फरियाद हुई इसकी,
तब बोल उठा मुंसिफ तुम आओ गली घर पे।
*
अंज़ान नहीं कोई ग़द्दार यहां कितने,
इल्ज़ाम किसी सर का लाओ न कलंदर पे।
*
इंसान मिलें बहतर मिल जाएं यहां बदतर,
हो ऐब नहीं फिर भी लग जाए कोई सर पे।
***
प्रदीप ध्रुवभोपाली, भोपाल,म.प्र.
दिनांक,23/03/2020
मो.09589349070
**************************
3:53 am

ग़ज़ल :- उठी नज़र गिरा दिया उसने - प्रदीप ध्रुव

वज़्न-1212-1212-22

उठी  नज़र  गिरा  दिया  उसने।
अजाब  में  मिला  दिया  उसने।
*
तमाम  उम्र  भर  सलामत  रहे,
कि  आइना  दिखा  दिया  उसने।
*
उधार  प्यार  जो दिया  कल  को
नसीब  ये  निभा   दिया   उसने।
*
शरारतें   गुज़र   गईं   हद   से
ग़नीमतें   बता   दिया  उसने ।
*
शबाब  वो  शराब  माफिक़ *ध्रुव*
हसीन  ग़ुल  खिला  दिया उसने।
***
**************************
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनांक.25/03/2020
मो.09589349070
**************************
3:51 am

ग़ज़ल :- हिदायत ये जमाने में निभाना है - प्रदीप ध्रुव


वज़्न-1222-1222-1222
***
हिदायत  ये  जमाने में  निभाना  है।
पता  आया  जहां तो  कैदखाना है।
*
हिकारत से  उन्हें वो  देख  कर  बोले
खुदा  जाने  कहां  पे  आबदाना है।
*
कहीं  मातम  उधर  बारात  है निकली,
निहायत  बेरहम  ये  तो जमाना है।
*
कहीं  सीरत  कहीं  सूरत  बिकाऊ सब,
बिके   सबकुछ   किसी   को  आजमाना है।
*
ज़हन्नुम  देख  आये  इस  ज़माने का,
बिलायत   ज़ीस्त   का   इक कैदखाना है।
*
हुआ  था इश्क़  है  होता  रहेगा *ध्रुव*
बदल  जाते  करक्टर यूं जमाना  है।
***
**************************
प्रदीप ध्रुवभोपाली, भोपाल,म.प्र.
दिनांक.25/03/2020
मो.09589349070
**************************
3:50 am

ग़ज़ल :- चोर मैं तू है सिपाही तो मज़ा है आ रहा - प्रदीप ध्रुव

चंद अश़आर/ग़ज़ल
**************************
बह्र/-2122-2122-2122-212
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन
फाइलुन

चोर मैं तू है सिपाही तो मज़ा है आ रहा।
तू सड़क मैं यार राही तो मज़ा है आ रहा।
*
जो कहे तू वो बनेगी सब कहें नाज़ीर अब
हो रही है वाहवाही तो मज़ा है आ रहा।
*
आसमां है सुर्ख़ अब तो रोज़ वो गहरा चला
सुर्ख़ से हो जाय स्याही तो मज़ा है आ रहा।
*
ज़िन्दगी को ग़र हक़ीक़त में जिएं ये सीख लें
फिर कहेंगे या इलाही तो मज़ा है आ रहा।
*
जो निहायत खानदानी तो अलग तासीर भी
जो हुई है ठाट शाही तो मज़ा है आ रहा।
*
फ़लसफ़ा है ज़ीस्त ये नोबल भी हम यूं कह सकें
ये ज़ुदा *ध्रुव* यार राही तो मज़ा है आ रहा।
*
***
**************************
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल म.प्र.
दिनांक 29/03/2020
मो.09589349070
**************************
3:49 am

ग़ज़ल :- सियासत को क़रीने से अगर तुम खुद सजाओगे - प्रदीप ध्रुव

***********ग़ज़ल**********
बह्र/अर्कान-1222*4,मफाईलुन*4

***
सियासत को क़रीने से अगर तुम खुद सजाओगे।
यकीं मानो फतह का दौर तब ही यार लाओगे।
*
बुलंदी में नहीं झंडा कभी यूं ही ये लहराये
अगर चाणक्य नीती हो तभी कुछ यार पाओगे।
*
बिसातें भी बिछाना है ज़ुदा अंदाज़ शातिर हो
यकीं मानो फतह होगी तुम्हीं तुम लहलहाओगे।
*
शराफ़त ओढ़ कर चलना ज़ुबां यूं हो गली मिश्री
बनाया है जिसे आका सलामी ठोंक आओगे।
*
बनो आबाम के लीडर निहायत सादगी रखना
बिठायेगी तुम्हें सर‌ पे यकीनन जीत जाओगे।
*
दवा दारू कभी कंबल भरी रातों मयस्सर कर
खिलेगा ग़ुल तुम्हारे सर पे *ध्रुव* सहरा सजाओगे।
***
**************************
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र
दिनांक.30/03/2020
मो.09589349070
**************************
3:46 am

ग़ज़ल :- सब अकेले ही न चखा जाये - प्रदीप ध्रुव


वज़्न-2122-2112-22

सब अकेले ही न चखा जाये।
कुछ सभी का ख़्याल रखा जाये।-01
*
हम नहीं बेगार करेंगे अब
काम भी अब ख़ास दिया जाये।-02
*
हो गये हो आप मसीहा जब,
ख़ैरमक़दम यार किया जाये।-03
*
वो नहीं सुनते अब जायज भी,
दिन गये लद यार अब कहा जाये।-04
*
यार ज़िद अपनी भी यही है अब
अब न ज़्यादा सितम सहा जाये।-05
*
कर रहा तू वार अरे ज़ाहिल,
हांथ दो क्या यार दिया जाये।-06
*
डर खुदा से वो न बख्शेगा "ध्रुव"
हांथ रख सौग़ात मिला जाये।-07
***
★★★★★★★★★★★★
स्वरचित,कापीराइट,ग़ज़लकार,
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.17/01/2020
मो.09589349070
★★★★★★★★★★★★
3:44 am

हास्य रचना/चुनाव का मौसम - प्रदीप ध्रुव


चुनाव का मौसम आया,नेताजी ने बुज़ुर्गो के पाँव छुए।और विजयश्री मिलते ही पाँच बरस को ईद के चाँद हुए।
फिर क्या...
ग़ुमशुदा नेता की तलाश में जनता ने जगह जगह इश्तहार लगवाया.।
कोई ज्योतिषियों के चक्कर तो कोई तांत्रिक के यहाँँ हवन करवाया।
पर हाय री किश्मत..
इन सबके बावजूद भी नेता लापता पाँच बरस नज़र न आया।
और अगला चुनाव आने की आहट भर से नेताजी फिर पधारे..
किसी ने कहा आप कहाँ से आ टपके,सभी ने कहा तुम स्वर्ग सिधारे.
अरे चुनावी मौसम के मेंढक फिर टर्र टर्र टर्राने आ गये..
मुझे पता है तुम्हारी दाल भर काली नहीं,सारी दाल ही खा गये..
अरे बुड़बक बेशरम मोटी खाल के तुम,न काम के न काज के तुम..
अब कौन सा मुँह ले कर तुम फिर से आशिर्वाद लेने आ गये..
***  ***  ***   ****   ****   ****  ***  ***   *****
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल म.प्र.दिनाँक.
08/02/2020
मो.09589349070
****   ****   ***   ****   ****   ***** 
3:43 am

हास्य रचना/आग किसने लगाई - प्रदीप ध्रुव


तुम शेर..हम..सवाशेर..गुलमटो..
ये आग किसने लगाई..
मै ने और मिश्रीलाल ने....
सालो को घोल घोल के ऐसा पिलाया..
अरे.हमने.तो कान में फुसफुसाया
हम हैं न..लगे रहो मुन्नाभाई..
स्सालों को बिरयानी किसने खिलाई..
मै ने और मिश्रीलाल ने...
आजादी के सत्तर सालों में,
रोंककर रखा बस मिश्री पिलाते रहे..और वो ज़हर उगलते रहे..
आज़ादी का..कहर बरपते रहे..
ये काम किसने किया...
मै ने और मिश्रीलाल ने..
अरे गर्व से सीना चौड़ा हो जाता मेरा.
साम्प्रदायिकता की आग किसने सुलगाई..
भारत तेरे टुकड़े होंगे,चिल्लाने की
घुट्टी किसने भर भर पिलाई
मै ने और मिश्रीलाल ने..
काम ग़ज़ब का किया हमने 
स्सालों को न मरने न जीने दिया हमने..
कसम कालेचोर की उसके सगे भाई निकले हम..
ये सब्सिडी फ्री बिजली पानी की आदत किसने सिखाई.
मै ने और मिश्रीलाल ने..
अरे हमने कहा लगे रहो रातदिन
साल में एक की जगह कैलेण्डर चार निकालो..
और ठीकरा इसपे उसपे फोड़ो...
सच भी है..ये काम किसने किया
मै ने और मिश्रीलाल ने..
अरे निकम्में के नातियों...
बैठे खा रहे सफेद हाँथियो़..
दिनरात काम हम करें,और तुम
रिजल्ट अपना बता रहे..
हमीं तो हैं,जो तुमको बसाया..
तुम्हारा बाज़ा हमने बजाया...
तभी तो सुर भी बेसुरा निकला
ये काम किसने किया..
मै ने और मिश्रीलाल ने..
अँधेरे के यारो,देश के.मक्कारो
कब तक तुम्हारा भार हम उठायेंगे
कम से कम अब तो हमारी जय बोलो..
वंदेमातरम् बोलकर मुँह खोलो
ज़मीन है नहीं पैरों तले हमारी है
टेंट भी हमारा बिरयानी हमारी है
आधे कैलेन्डर भी हमारे हैं
नारे लगाने वाले आधे हमारे हैं
आज़ादी सत्तर सालों बाद डूब मरना किसने सिखाया..
मै ने और मिश्रीलाल ने..
गुलामी पसंद नमकहरामों
अँधेरे के बाशिंदों खैरातियो
शर्म से डूब मरो,मेरा काम तुम्हारा नाम..
तुम्हारे चाँद मे चार चाँद किसने लगाया..
मैं ने और मिश्रीलाल ने
वो तो बताया नहीं,लगे रहे हम
किया था वादा तुमसे यहीं रहो
तुम्हें आगे न बढ़ने देंगे खैरातियो
न जीने न मरने देंगे...
दूसरो के टुकड़ो पे जीना किसने सिखाया
तुम्हें वोट बैंक किसने बनाया..
मै ने और मिश्रीलाल ने..
और खाओ रसमलाई, फोकट की
हुई न तुम्हारी जगहँसाई...
अब चिल्लाते रहो बस..
तुम्हें कहीं न रहने दिया...
ये काम आखिर किसने किया..
मैं ने और मिश्रीलाल ने....
अरे लात के भूतो,कम से कम अब तो सोते से जाग जाओ..
हम भी डूब गये तुम्हें डुबा दिया
सरेआम ये काम किसने किया..
मै ने और मिश्रीलाल ने...
***
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.09/02/2020
मो.09589349070
★★  ★★★  ★★  ★★  ★
3:42 am

गीत :- आज सुखमय जिएं किसने देखा है कल - प्रदीप ध्रुव


आज सुखमय जिएं किसने देखा है कल।
रुख यहां ज़िन्दगी का बदलता है पल।
आश विश्वास संचार सुखमय करे।
जो मिले घाव थे आज उनको भरे।
ऐसा जीवन भी जीना नहीं काम का,
हर घड़ी मन में ये अब मरे अब मरे।
सांच को देखिए आंख को आज मल।
रुख यहां ज़िन्दगी का बदलता है पल।०१
*
भाव समभाव के पी सकें हम ग़रल।
आश कम हों यहां जी सकें हम सरल।
आवरण हम मिटा ठोस चिन्तन करें,
ज़िन्दगी को बनाएं सरल और तरल।
हम सजग हो चलें हर घड़ी आज छल।
रुख यहां ज़िन्दगी का बदलता है पल।०२
*
हम सफलता उसे आज हैं कह रहे।
जो कि ऊंचाइयों की तरफ बह रहे।
आज असफल जो ईमान पे हैं चले
नित्यप्रति घात प्रतिघात हैं सह रहे।
सांच सुखमय मगर हैं वो दिखते विफल।
रुख यहां ज़िन्दगी का बदलता है पल।०३
*
अब बिना कूटनीति है निस्सार सब।
कुर्सियों पर नज़र है यही सार अब।
कीजिए अब खुशामद सियासत बड़ी
वक्त बेवक्त जरूरत ही आ जाए कब।
संग सियासत रहे तोड़ आए निकल।
रुख यहां ज़िन्दगी का बदलता है पल।०४
*
****************************
प्रदीप ध्रुवभोपाली, भोपाल,म.प्र.
दिनांक.07/04/2020
मो.09589349070
****************************
3:41 am

गीत :- हमें चलना संग सभी के,पर इतिहास भी रखना याद हमें - प्रदीप ध्रुव भोपाली


हमें चलना संग सभी के,
पर इतिहास भी रखना याद हमें।
हम आंखें मूंद चलें नहीं अब,
नहीं होना फिर बर्वाद हमें।
*
हम भाईचारा रखेंगे पर,
पर नीयत पर चौकस होंगे।
कहता इतिहास भरोसा कर, 
फिर मरने को बेवश होंगे।
इतिहास वो जौहर का अब भी,
हर पल आता है याद हमें।
हम आंखें मूंद चलें नहीं अब,
नहीं होना है बर्वाद हमें।-01
*
हर चाल विफल कर देंगे हम,
खोटी नीयत को हराएंगे।
जो मानवता के दुश्मन हैं,
प्रण प्राण से जुट के मिटाएंगे।
संहार करेंगे दुश्मन का,
अब करना नहीं फरियाद हमें।
हम आंखें मूंद चलें नहीं अब,
नहीं होना है बर्वाद हमें।-02
*
वो फूट करेंगे आपस में,
नहीं फंसना हमको चालों में।
संहार करेंगे मिलकर हम,
ताक़त है बहुत दिलवालों में।
बर्वाद करेंगे दुश्मन को,
भारत करना आबाद हमें।
हम आंखें मूंद चलें नहीं अब,
नहीं होना है बर्वाद हमें।-03
*
ये झूठे भाईचारे के,पैगाम 
न अब चल पाएंगे।
हम देश के हित में चाल चलें, दुश्मन सारे हिल जाएंगे।
ये सुन लें खोल के कान सभी,
करना हिंद ज़िंदाबाद हमें।
हम आंखें मूंद चलें नहीं अब,
नहीं होना है बर्वाद हमें।-04
*
तुम झूठ के राग अलापो मत,
भारत के हित में काम करो।
जयचंद हमारे नज़रों में,
उनका तो बुरा अंज़ाम करो।
अंज़ाम करेंगे हम तो अब,
नहीं करना अब फरियाद हमें।
हम आंखें मूंद चलें नहीं अब,
नहीं होना है बर्वाद हमें।-05
**
****
**************************
प्रदीप ध्रुवभोपाली भोपाल म.प्र.
दिनांक.10/04/2020
मो.09589349070
**************************
3:39 am

गीत :- दिन पुराने लौट आए हैं - प्रदीप ध्रुव भोपाली


बिछड़ कर जो गये पंछी, यकायक लौट कर आए।
बहुत सहमें हुए चहरे, गिरफ्त से छूट कर आए।

कोई पैदल ही चलकर के,आए गांव को अपने।
शहर से वो चले आए,जो देखे छोड़कर सपने।
भयावह रोग से डर के,वो घर गांव को आए।
बहुत सहमें हुए चहरे, गिरफ्त से छूटकर आए।-01
*
विरह में थे शज़र, डालों को पंछी छोड़कर भागे।
मगर मुश्किल हुई पंछी,जो आए भाग हैं जागे।
शहर को जो गये पंछी,मज़ा हैं लूटकर आए।
बहुत सहमें हुए चहरे, गिरफ्त से छूटकर आए।-02
*
हमारे गांव को पिछड़ा समझकर,
थे शहर भागे।
न कहकर वे कभी थकते, हमारे भाग हैं जागे।
बदलता देख मंज़र गोद मां की,
टूटकर आए।
बहुत सहमें हुए चहरे, गिरफ्त से छूटकर आए।-03
*
बहुत से पांव चलकर,आ सके न, याद है आयी।
हवाले आग के उस शहर में फरियाद है आयी। 
न आखिर पल में घरवाले,शक्ल भी देखने पाए।
बहुत सहमें हुए चहरे, गिरफ्त से 
छूटकर आए।-04
*
परिन्दे ठूंठ पर आए,बसंत फिर लौट आया है।
हरे कानन और गांवन ने खुशी के गीत गाया है।
वतन आए खुशी से वो, नहीं वो 
रूठकर आए।
बहुत सहमें हुए चहरे, गिरफ्त से छूट कर आए।-05
*
**************************
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनांक.13/04/2020
मो.09589349070
**************************
3:33 am

दीप आओ जलाएं,हम कोरोना भगाएं - प्रदीप ध्रुव भोपाली


दीप आओ जलाएं,हम कोरोना भगाएं।
आ गया है जो संकट,हम उसको मिटाएं।

घर के रहकर सजग,देना मात हमें।
हो सेनेटाइज इसमें,देना साथ हमें।
दाल कोरोना की,न अब गल पाएगी,
हर मदत हाथों में,हाथ देना हमें।
हम-वतन से मोहब्बत,चलो हम निभाएं।
आ गया है जो संकट,हम उसको मिटाएं।

कहती सरकार जो,उसका पालन करें।
दूरी सामाजिक,उसका अनुपालन करें।
स्वच्छता रखना है,ये समाधान है,
आओ जीवन में,हम अनुशासन करें।
मिटे बीमारी ये,हर कदम हम उठाएं।
आ गया है जो संकट,हम उसको मिटाएं।

मास्क पहनें सभी,घर में ही हम रहें।
मन में रख धैर्य, विचारों से सम रहें।
ज़ंग कोरोना भयावह,बचें यत्न कर,
ताकि कल खुशियां हो,आंखें न नम रहें।
करना पालन नियम,आओ सबको बताएं।
आ गया है जो संकट,हम उसको मिटाएंं।

**************************
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल म.प्र.
दिनांक.05/04/2020
मो.09589349070
**************************
2:01 am

मुक्तक‌- दिल के करीब ये कभी आजार - अभिषेक जैन

न करना।।
दिल के करीब ये कभी आजाद
न करना।।
ये इश्क है इसको कभी अखबार
न करना।।
वो काम का बंदा है अभी काम
बहुत है।।
ये रोग लगाकर उसे बेकार
मत करना।।

अभिषेक जैन पथारिया
दमोह मध्य प्रदेश

सोमवार, 13 अप्रैल 2020

7:36 pm

नशा तेरे प्यार का - वीरेन्द्र कौशल


नशा  तेरे  प्यार  का 
देखो तो कितना अज़ीब 
हो गर कहीं रेंज़ से दूर 
कर देता मुझे मज़बूर
ऐसा होता यूं महसूस
हूँ  नहीं  मैं  महफूज़ 
हैं सिर्फ यह तड़पता 
हो गर कहीं आस पास य़ा करीब
फिर सुन ले मेरे रक्कीब 
तो दिल हैं यह धड़कता 
तेरा  ज़ो हो जाये दीदार 
तो  होता  हूँ  दिलदार 
न  हो  गर तेरा दीदार 
ये  दिल रोता  ज़ार ज़ार 
पुकारता  तुझे  बारम्बार 
तो  आजा  तो  एक  बार 
तेरी एक झलक को बेताब 
हर पल अा रहे तेरे ख्वाब 
नशा  तेरे  प्यार  का ....

आपका अपना ,
वीरेन्द्र  कौशल
11:07 am

ग़ज़ल :- ग़ज़लमेरी जान कितना सताने लगी है - पारस गुप्ता


मेरी  जान  कितना  सताने  लगी  है..... 
वो सपनों में फिर से हां आने लगी है.....

निगाहों  में मेरी थी तस्वीर जिसकी...
वहीं आंख फिर क्यों सजाने लगी है.....

खयालों  की  दुनिया  में  डूबे हैं ऐसे...
वहीं  रात  दिन  फिर  चुराने लगी है.....

ये  बातें  वही हैं रुकी जो अधर पर..
सभी  सामने  आज  आने  लगी  है.....

मुलाकात होती कभी जो सड़क पर...
हमें  देख  कर  मुस्कुराने   लगी  है.....

जरा  यार  देखो हुआ क्या जुबां को... 
मोहब्बत  के गीतों को गाने लगी है.....

कहीं मैं चुरा लूँ न उसके ये दिल को...
यही  सोचकर  दिल  छुपाने लगी है..... 

कभी  हमने  पूछा  मुहब्बत है हमसे...
दबे  पांव  शरमा  के  जाने  लगी  है.....

उन्हें  प्यार  हमसे  तो  होने लगा है...
सहेली  से  अपनी  जताने  लगी है.....

वो आए हैं छत पे तो मिलने को हमसे...
मगर   क्यूं   दुपट्टा   सुखाने  लगी  है.....

ये  डर  है  कोई  देख  लेगा  हमें  तो...
वो छुप छुप के नजरें मिलाने लगी है.....

कहा  उसने  हमसे मुहब्बत है तुमसे...
वो  चाहते  को अपनी बताने लगी है.... 

अभी तक तो किस्सा था सपनों का
हकीकत  में  पारस  को पाने लगी है......


रचनाकार - पारस गुप्ता
                   (शायर दिलसे)

11:06 am

ग़ज़ल :- क्या खुदा मंजूर करता अब दुआ है.....पारस गुप्ता

२१२२,२१२२,२१२२

क्या  खुदा  मंजूर  करता  अब  दुआ है.....
इश्क़  क्यों  लगता  मुझे  अब बद्दुआ है.....

लिख रहे हैं फिर गजल हम इश्क़ पे हां....
जी  अभी  कोई  नया,  शाबा  जगा  है......
(शाबा= दर्द-ए-दिल)

आइना  क्यों  साफ  करते फिर रहे हो...
गर्द   तो   माथे   पे   तेरे   ही  लगा  है......

रात   भर   सोया   नहीं   याद  में   वो...
रात  भर  गुमशम  कहीं  रोता  रहा  है.....

#पारस_गुप्ता

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