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सोमवार, 9 जुलाई 2018

सजल विधा - आज हम लेकर आये हैं एक बिलकुल नई “सजल विधा”।

आज हम लेकर आये हैं एक बिलकुल नई “सजल विधा”।यह विधा उर्दू की गजल विधा का हिन्दी रूप है। इसको लिखने के लिये गजल की बह्र को सीखने के बदले केवल मात्रा गणना सीखना ज़रूरी है। ग़ज़ल की कठिन बह्र से कुछ अलग सजल के बेहद सरल नियम निम्नानुसार हैं।


हिन्दी गजल को उर्दू के उस्ताद लोग बह्र, रुक्न और अरकान के स्तर पर खारिज कर देते हैं इसलिये हम लोगों ने हिन्दी गजल का नया नामकरण "सजल" के रूप में किया है. अब हिन्दी गजलों में उर्दू का कोई नियम लागू नही होगा. सजल का विस्तृत नवीन संधारित नियम इस तरह है:
दिनांक 02-09-2016 को जहाँ सर्वसम्मति से विद्वानों ने सजल शिल्प हेतु वैकल्पिक सम्बोधन शब्दों की सूची का निर्धारण किया वहाँ दूसरी ओर सजल के शिल्प का स्वरूप भी निर्धारित किया गया ।
आज सजल विधा को
और उसके शिल्पगत गठन को
पटल पर सघन चिंतन-मनन और उसके शिल्प पर गहन मन्थन के उपरान्त सभी विद्वानों की सर्वसहमति से इस रूप में मान्य किया गया है---
सजल नाम की नई विधा को हिन्दी-काव्य में एक नई विधा के रूप में पूर्ण मान्यता दी जाती है !
इसके स्वरूप को इस तरह से मान्य किया किया जाता है कि-----
1---सजल में दो-दो पंक्तियों के कम से कम 5 या फिर कितने ही विषम संख्या में पदिक होंगे ,
2--प्रथम पदिक को "आदिक"
कहा जाएगा ,
3--अंतिम पदिक को "अन्तिक"
कहा जायेगा ,
4---प्रत्येक पदिक में अंत के हर बार ( आवृत्ति )आने वाले एक शब्द को
या
केवल मात्रा-स्वर
को
"पदान्त" कहा जायेगा ,
5---पदिक में इस पदान्त से पहले आने वाले तुकान्त के शब्द को "समान्त" कहा जायेगा ।

इसके अतिरिक्त सजल के शिल्प के अंतर्गत 6 बिंदु और स्थिर किये गए ----
शिल्प का स्वरूप :
1-पंक्ति (मिसरे)का कोई सुनिश्चित मीटर होने की बाध्यता नहीं है, उसका कोई भी मीटर हो सकता है ।
2-लय कोई भी सजलकार की अपनी पसंद की होगी ।
3-पदिक (शेर) में किसी भी हिन्दी छन्द की अनिवार्यता नहीं होगी ।
4- सजल में पदिक (शेर)की रचना अपनी धुन में स्वाभाविक पढ़ंत के हिसाब से लयात्मक रूप में करेगा ।
5-सजल में मात्रिक बाध्यता नहीं होगी, मात्राभार को गिराकर ,उठाकर पढ़ंत की लय आधारित रचने की छूट होगी ।

_ सजल शिल्प हेतु वैकल्पिक सम्बोधन शब्दों की सूची
ग़ज़ल --- सजल
शेर ---- पदिक
मतला -- आदिक
मक्ता --- अन्तिक
रदीफ़ --पदांत
काफ़िया -समान्त
मिसरा -- पंक्ति

--डॉ०अनिल गहलौत और डॉ०राकेश सक्सेना

उपरोक्त शब्दावली को अपनी एक सजल के माध्यम से हम स्पष्ट करते हैं।
हमारी ‘सजल’

इसने -उसकी खायी है रोटी
गोल चाँद बन आयी है रोटी--1

मजदूरी कर दिन गुजरा फिर भी
भर के पेट न पायी है रोटी--2

भूख की आग सताये न जिसको
उसको कभी न भायी है रोटी--3

भूखे उस पर टूट पड़े थे जब
खुद से ही शरमायी है रोटी--4

त्यागे थे प्राण इसी की खातिर
निकली तू दुखदायी है रोटी--5
'
मुखिया निकले घर के जिन्होने
देकर जान कमायी है रोटी --6

भूखे को न कभी ज्ञान पढाओ
उसका कृष्ण कन्हायी है रोटी--7

उपरोक्त सजल मे पहली दो पंक्तियों से बना पद 1 “आदिक’’ है। जिसकी दोनों पंक्तियाँ तुकांत हैं ।
अन्य सभी 2 से 6 तक ‘पदिक’ कहलायेंगे। अंतिम पद नंबर 7 अंतिक है। इन सभी पदों मे दूसरी पंक्ति आदिक की पंक्तियों से तुकांत होगी।
इस सजल की प्रत्येक पंक्ति मे समान मात्रा भार है। हर पंक्ति का अंत ‘’है रोटी’’ से हो रहा है यह ‘’पदांत’’ हैं जो आदिक की दोनों पंक्तियों और हर पदिक की दूसरी पंक्ति मे समान है । और ‘’समान्त’’ है ,‘’आयी’’
खायी,भायी, कमायी,आयी, दुखदायी आदि।
ग़ज़ल की ही तरह आप अंतिक मे अपना नाम डाल सकते हैं ।
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2 टिप्‍पणियां:

  1. "सजल विधा" से प्रभावित होकर यह पोस्ट हमने फेसबुक के "अपना अँगना" में डाली थी। उद्देश्य यही था कि ज्यादा से ज्यादा रचनाकार इस विधा के बारे में जाने और प्रेरित हों इस विधा में लिखने के लिये। सादर आभार।

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