ये उमा रमा का साहस है ये वीरों की परिभाषा है
जो ढोल पीटते हिन्दू का धरती पर घोर कुहासा है
बेदर्दी जल्लादों सा व्यवहार यहां पर होता है
कुछ चंद लफंगे हसते हैं मजबूरों का दिल रोता है
ये राम राज का शासन है या खरदूषण सा जंगल है
अपना ही मार रहा खुद को देखो ये कैसा दंगल है
कुछ नकभिन्ने प्रत्येक जगह पर नाक बड़ी भिन्नाते हैं
जिन पर न मरी मुशरिया है खुद को आजाद बताते है
नक्सल वादी की तरह आज व्यवहार निभाया जाता है
सत्रह सालों के तपस्वी को बेकार बताया जाता है
यहां दिखते नही सुधारक हैं उनको ये शर्म मुबारक हो
इन वाणी के जल्लादों को लाशों की बड़ी तिजारत हो
दयनीय दशा से ये गुजरे परिभाषा कैसे छूट गयी
दुर्योधन दिखे असंख्यों हैं गिनती की भाषा छूट गयी
इस तानाशाही शासन ने खेल मौत का खेला है
इन पढ़े लिखे मासूमों ने हर बार वक्ष पर झेला है
वाजीगर ने हर बार कहा मैं काम तुम्हारा कर दूँगा
मन में उनके अभिलाषा थी मैं जहर जिस्म में भर दूँगा
राजेश मिश्र
बीसलपुर (पीलीभीत)
जो ढोल पीटते हिन्दू का धरती पर घोर कुहासा है
बेदर्दी जल्लादों सा व्यवहार यहां पर होता है
कुछ चंद लफंगे हसते हैं मजबूरों का दिल रोता है
ये राम राज का शासन है या खरदूषण सा जंगल है
अपना ही मार रहा खुद को देखो ये कैसा दंगल है
कुछ नकभिन्ने प्रत्येक जगह पर नाक बड़ी भिन्नाते हैं
जिन पर न मरी मुशरिया है खुद को आजाद बताते है
नक्सल वादी की तरह आज व्यवहार निभाया जाता है
सत्रह सालों के तपस्वी को बेकार बताया जाता है
यहां दिखते नही सुधारक हैं उनको ये शर्म मुबारक हो
इन वाणी के जल्लादों को लाशों की बड़ी तिजारत हो
दयनीय दशा से ये गुजरे परिभाषा कैसे छूट गयी
दुर्योधन दिखे असंख्यों हैं गिनती की भाषा छूट गयी
इस तानाशाही शासन ने खेल मौत का खेला है
इन पढ़े लिखे मासूमों ने हर बार वक्ष पर झेला है
वाजीगर ने हर बार कहा मैं काम तुम्हारा कर दूँगा
मन में उनके अभिलाषा थी मैं जहर जिस्म में भर दूँगा
राजेश मिश्र
बीसलपुर (पीलीभीत)
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