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मंगलवार, 17 जुलाई 2018

गांव का घर - अनन्तराम चौबे

गांव हमारा सुन्दर प्यारा
गांव का घर है अलग न्यारा ।
बचपन की है याद दिलाता ।
बरसात का मौसम याद है आता ।
पानी रोज वहाँ गिरता था ।
हफ्तो सूरज दर्शन नही देता ।
आंगन गलियो मे कीचड़ रहता ।
मूसलाधार जब बारिश होती ।
गांव की नदी उफान पर रहती ।
नदी मे तैरते मस्ती करते
साथी सभी इकट्ठे रहते ।
नदी मे खूब नहाते रहते ।
स्कूल रोज पढने को जाते
नागा न स्कूल का करते ।
बाढ बहुत जब नदी मे आती
घर के आंगन तक आ जाती ।
गलियो मे पानी भर जाता
घर से निकलना मुश्किल होता ।
बरसात शुरू जब होती थी
घर के सामने के बाड़े मे
माँ भुट्टा ककड़ी भिन्डी
के पेड़ लगा देती थी ।
भुट्टा बड़े जब हो जाते
रोज भूजकर खाते थे
वही नाश्ता करते थे ।
एक हाथ की ककड़ी होती
खाने के साथ उसको खाते ।
अब तो गांव गांव नही लगता
शहर के जैसा अब वो लगता ।
अभी भी गांव मे घर है अपना
बचपन की याद जब आती
मन को भावुक वो कर देती ।

अनन्तराम चौबे 'अनन्त'
    जबलपुर म प्र

      

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