कैसी ये आस मन में आयी है ।
खुशी नस नस में मेरे छायी है ।।
मिला जो ख़त तो उसको पढ़ते ही ।
मुस्कराहट सी लब पे छायी है ।।
हमको वीरानियां पसंद थी तब तो ।
अब तो रौनक ही मन को भायी है ।।
मिलेंगे फिर ये बिछड़ना कैसा ।
चन्द लम्हों की ये जुदाई है ।।
दिल हुआ कैद उनकी चाहत में ।
चाहता अब नहीं रिहाई है ।।
बहारें मौज ले रही मन में ।
ग़मों को दे चुके विदाई है ।।
अब तो हर रोज़ लब पे है 'मुस्कान' ।
मन में छवि तेरी जो बसाई है ।।
सुशीला धस्माना 'मुस्कान'
वाह वाह आद. शानदार ग़ज़ल।
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