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रविवार, 1 जुलाई 2018

ग़ज़ल - कैसी ये आस मन में आयी है - सुशीला धस्माना



कैसी ये आस मन में आयी है ।
खुशी नस नस में मेरे छायी है ।।

मिला जो ख़त तो उसको पढ़ते ही ।
मुस्कराहट  सी  लब  पे छायी  है ।।

हमको वीरानियां पसंद थी तब तो ।
अब तो रौनक ही मन को भायी है ।।

मिलेंगे फिर ये बिछड़ना  कैसा ।
 चन्द  लम्हों  की  ये जुदाई  है ।।

दिल हुआ कैद उनकी चाहत में ।
चाहता  अब   नहीं  रिहाई   है ।।

बहारें  मौज  ले  रही   मन  में ।
ग़मों  को  दे  चुके  विदाई  है ।।

अब तो हर रोज़ लब पे है 'मुस्कान' ।
 मन  में  छवि  तेरी  जो  बसाई  है ।।

सुशीला धस्माना 'मुस्कान'

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