क़रम तेरा रहा साकी वही नाजुक मिजाजी है ।
ग़ज़ल का शौक बादाखार को अब ख़ुशगुवारी है ।।
सुराही को न खोलो तुम नशा मुझको गिरा देगा ।
यकीं कर हर सुहानी बज्म मे साकी दिवानी है ।।
जवां होती गई रातें रहे उस इश्क की खुश्बू ।
सहारा अब वही यादें नशे की शब गुलाबी है ।।
शराबी मैं नहीं तेरी निगाहों में कहां प्याले ।
मुझे समझा नहीं सकतीं नज़र ऐसे सवाली है ।।
मिली थी इश्क मे तेरी वफ़ा क्यों अब सताती है ।
कहां मांगें वफ़ा 'त्यागी' यहां तो सब भिखारी है ।।
© हिम्मत सिंग त्यागी
ग़ज़ल का शौक बादाखार को अब ख़ुशगुवारी है ।।
सुराही को न खोलो तुम नशा मुझको गिरा देगा ।
यकीं कर हर सुहानी बज्म मे साकी दिवानी है ।।
जवां होती गई रातें रहे उस इश्क की खुश्बू ।
सहारा अब वही यादें नशे की शब गुलाबी है ।।
शराबी मैं नहीं तेरी निगाहों में कहां प्याले ।
मुझे समझा नहीं सकतीं नज़र ऐसे सवाली है ।।
मिली थी इश्क मे तेरी वफ़ा क्यों अब सताती है ।
कहां मांगें वफ़ा 'त्यागी' यहां तो सब भिखारी है ।।

© हिम्मत सिंग त्यागी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे
भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400