शुक्रिया, बेज़ार दिल मेरा दी'वाना हो गया
बस कयामत ढा रही है आपकी ये सादगी
आपकी नज़रों का मैं जैसे निशाना हो गया
तंग गलियों से गुजर के उनको छूना याद है
छोड़िए अब क्या कहूँ क़िस्सा पुराना हो गया
कुछ दिनों से शाम को छत पर टहलते रोज वो
घूमने का मुझको भी अच्छा बहाना हो गया
जिंदगी में आ गया है कोई यूं लेके बहार
अब किसी के दिल में भी मेरा ठिकाना हो गया
खुल गया जो एक मयखाना तो फिर मत पूछिए
शह्र का माहौल सारा शायराना हो गया
फेसबुक से आशिकी, वादे-वफ़ा,आसां है सब
"सोम"फिर भी लोग कहते क्या जमाना हो गया
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शैलेन्द्र खरे"सोम |
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