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बुधवार, 4 जुलाई 2018

ग़ज़ल - वक़्त जैसा भी हो आता है गुजर जाता है - संतोष प्रीत

वक़्त जैसा भी हो आता है गुजर जाता है ।
बेवजह  टूटकर  इंसान  बिखर  जाता  है ।।

दर्द और गम ही न आये तो जिंदगी क्या है ।
बाद तपने के ही कुंदन तो निखर जाता है ।।

क्या गुजरती है न पूछो ये किसी के दिल से ।
वादा जब करके कोई अपना मुकर जाता है ।।

हिम्मत हारे नही इंसान तो क्या मुश्किल है ।
अच्छी तदवीर से तकदीर सवर जाता है ।।

एक  न  एक  दिन  बुझनी  ही  है  चरागे हयात ।
'प्रीत' फिर किसलिए कोई मौत से डर जाता है ।।

सन्तोष कुमार 'प्रीत'

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