आज दिल ये हुआ है पपीहा,
याद प्रीतम की आने लगी है ।
काली घिरती घटाँऐ सुहानी ,
मेरे दिल को सताने लगी है ।।
तुम बिना ऐसे तड़पू मैं साथी
जल बिना जैसे मछली तड़पती ।
हो रही बूँदे सावन की कातिल ,
आग तन में लगाने लगी है ।।
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
याद प्रीतम की आने लगी है ।
काली घिरती घटाँऐ सुहानी ,
मेरे दिल को सताने लगी है ।।
तुम बिना ऐसे तड़पू मैं साथी
जल बिना जैसे मछली तड़पती ।
हो रही बूँदे सावन की कातिल ,
आग तन में लगाने लगी है ।।
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
![]() |
बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी" डबरा |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे
भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400