ठसाठस भरी ट्रेन चल पड़ी साहब|बातें करते, फोन करते, झपकियों के मध्य शाम पाँच तीस पर सफर समाप्त हो गया|आ0 अनिल सर ले सम्पर्क साधा, बोले जंक्शन को बाहर मिलो,मैं जंक्शन को बाहर आया, पान खाया और दस मिनट में आ0.अनिल सर श्वेत कार में सवार दिखाई दिए, मेरा फोन घनघना उठा, फोन पर मैंने कहा सर आपके पीछे हूँ, तब तक कार के करीब मैं और प्रयास जी पहुँच गये, गेट खोल झट अन्दर पहुँचा, आ0 अनिल सर पूरी आत्मीयता से मिले, उनकी अनुभवी आँखों में अपनेपन की चमक पाकर हम दोनों गद्गद हो उठे|कार कार्यक्रम स्थल की ओर चल पड़ी, रास्ते भर बातचीत का सिलसिला चलता रहा|आ0 अनिल सर को ड्राइवर प्रिय खलील जी भी काफी दिलचस्प व्यक्ति थे|लो जी कार्यक्रम स्थल पर पहुँच गया|वहाँ हमारे कुछ रचनाकार साथी आ चुके थे, जिनसे परिचय प्राप्त हुआ, कुछ ही क्षणों में एक कार्यालय जैसे कक्ष में अपने रचनाकार साथियों के मध्य थे, जिनमें एक प्रकाशन के संरक्षक महोदय आ0 रघुनाथ मिश्र सहज जी थे, जिनकी सहजता आत्मीयता, भाषाशैली, व्यक्तित्व सभी कुछ सम्मोहित सा कर रहा था, आपसे काफी कुछ सीखने को मिला, सहज, सजल, सरस प्रयास ,लक्ष्मी के साथ बातों का, सहित्य चर्चा का एक सेतु सा बनता चला जा रहा था, जैसा कि साँझ की मोहकता अपनी ओर बुला रही थी, हाथ मुँह धोकर ,चाय नाश्ता किया, इस बीच आ0 मीनाक्षी परीक जी से बात कर काफी अच्छा लगा, आपकी आत्मीयता, आपकी वाकपटुता, सच्ची सहनशीलता प्रेरणाप्रद थी|आप ही कार्यक्रम की संयोजिका थीं, कार्यक्रम स्थल की रमणीयता अलौकिक थी देवभूमि होने के साथ साथ प्राकृतिक वातावरण की सोंधी खुशबू मन को आह्लादित कर रही थी|चाय नाश्ता करके मैं और प्रयास जी आ0.अनिल सर की कार से घूमने चले गये, घूम के वापस आये तो देखा कि भोजन का प्रबन्ध हो चुका है, आ0 मीनाक्षी जी के पतिदेव पूरी निष्ठा से आवभगत में लगे हुए थे|हम सभी रचनाकार आ0.सहज जी के साथ बातचीत कर रहे थे, आ0.अनिल सर ने आगामी योजना ~भूमिका बतायी ,सहज जी का तेज और चेहरे की मुस्कान बहुत भायी|
इसी बीच मुहब्बत गजल संग्रह के प्रकाशन की बात हुई, जिसके प्रकाशन का जिम्मा प्रजातन्त्र प्रकाशन ने लिया, कबर पृष्ठ शीघ्र भेजने को बोला ताकि आई एस बी एन नम्बर शीघ्र प्राप्त हो सके तो आपको उपलब्ध करा सकें,मुद्रण का समस्त कार्य जनचेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति को ही प्रदान किया गया है |इस संकलन का विमोचन एवं समारोह उ0 प्र0 में ही होगा|
भोजन लग चुका था, हम सभी साहित्यकार भोजन पर टूट पड़े, आ0 मीनाक्षी जी का प्रेम भोजन में रस बनकर स्वाद को बढ़ा रहा था|दाल चावल रोटी कद्दू की सब्जी वाह्हह्हह्ह वाह्हह्हह्ह सब उठ गये मैं खाता ही जा रहा था |आ0.मीनाक्षी जी स्वयं परोस कर सबको खिला रहीं थीं और आनंदित हो रहीं थी|
भोजन कर हम सब सोने चले गये, सबके अलग अलग कमरे थे, सब अपने अपने कमरे में लेट गये, हम और प्रयास जी, काफी देर बात करते रहे, कब सो गये पता न चला|कुछ साथी देर रात में आये, आ0.अनिल सर और आ0 मीनाक्षी जी सबको रिसीव करते रहे|
सुबह उठा ही था कि एक बच्ची चाय जे गयी थी, चाय पी और दैनिक कार्य से निवृत्त हुआ ही था कि आ0.अनिल सर कमरे में आ गये ,काफी देर कार्यक्रम के सन्दर्भ में बात हुई, हमने बोला कि जनचेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति की ओर से आपका और मीनाक्षी जी को सम्मानित करना है कुछ समय कार्यक्रम प्रदान करें, जिसकी स्वीकृति मिल गयी थी|चाय नाश्ते का बुलावा आ गया|बहुत ही स्वादिष्ट पोहा बना था खूब खाया, चाय पी|फिर रचनाकार साथियों के आने का सिलसिला चल पड़ा|हम और प्रयास जी घूमने चले गये आ0 अनिल दा की कार से|लौट कर आया तो भोजन चल रहा था|रायता,पूड़ी,सब्जी ,नमकीन बूँदी, लड्डू वाह्हह्हह्ह वाह्हह्हह्ह मजा आ गया, सभी साहित्यकार साथियों के अपने अपने समूह बन गये, सब बातों में मशगूल हो गये, कार्यक्रम प्रारम्भ होने की घोषणा हुई, तब सबका सम्मोहन टूटा|सुन्दर मंच सजाया गया था, जो एक इतिहास रचने की तैयारी में था|पहले सरस्वती वंदना एक बच्ची के नृत्य के साथ, फिर स्वागतगान और नृत्य, एक नृत्य आ0 मीनाक्षी जी के बेटे ने भी किया जो बहुत ही सुन्दर था| साझा संकलन नई रोशनी नई पहल का विमोचन, आ0 मीनाक्षी जी का प्रतिवेदन और उनके द्वारा रचित एक संकलन ~यथार्थ के झरोखे से, का विमोचन हुआ |
फिर सम्मान कार्यक्रम शुरू हुआ |सबका सम्मान पूरी निष्ठा से हो रहा था, संचलन बाबूराम जी कर रहे थे |मुझे भी सम्मानित करने का मौका मिला|इसी बीच प्रयास जी और मैने जनचेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति की ओर से आ0 अनिल कुमार गुप्ता जी और आ0 मीनाक्षी जी को उनके संकलनों के लिए सम्मानित किया|
साढ़े पाँच बजे कार्यक्रम समाप्त हुआ, सब अपने अपने गन्तव्य की ओर लपके|मैं और प्रयास जी आ0 सहज जी से, आ0 अनिल दा से और आ0 मीनाक्षी जी से विदा लेकर रास्ते की भोजन सामग्री लेकर अपने घर की ओर रवाना हो गया, बरेली आकर कुमार कौशल जी, विकास भारद्वाज सुदीप जी को जंक्शन पर बुलाया, ससमय दोनों भाई आ गये,
प्रतीक्षाल़य में दो घण्टे साहित्यिक चर्चा के बाद कौशल जी को तीन पुस्तक और सम्मान पत्र प्रदान किया फिर विकास जी प्रयास जी और मैं आटो से आगे बढ़ा, रास्ते में विकास जी उतर गये, और फिर ऑटो सो उतर बीसलपुर की इस पर सवार होकर घर आ ही गया|
बहुत ही सुन्दर लाजबाब ऐतिहासिक कार्यक्रम की आ0 मीनाक्षी जी, आ0.अनिल दादा, गुरु तुल्य आ0 सहज दादा के साथ सभी साथियों को बहुत बहुत हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ |
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दिलीप कुमार पाठक "सरस"
जय जय
😄🙏😄
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