हिंदी साहित्य वैभव

EMAIL.- Vikasbhardwaj3400.1234@blogger.com

Breaking

मंगलवार, 10 जुलाई 2018

ग़ज़ल - ज़ुबाँ को जब हमारी डर से - आनन्द तन्हा

ज़ुबाँ को जब हमारी डर से फ़ालिज मार जाता है ।
मुक़ाबिल झूठ के तब  सच  हमेशा  हार जाता है ।।

यक़ीनन  कुछ  कमी तो है, हमारे  इंतिखाबों  में,
तभी तो शहर से चुन कर कोई मक्कार जाता है।

किसी नेता का बेटा  फौज  में  भर्ती  नहीं होता,
अरे, सरहद पे लड़ने के लिये  दमदार जाता है।

हमेशा मुस्कुरा कर हम,  झुका लेते हैं सिर अपना
हमेशा   वार  उसका   इस  तरह  बेकार जाता है।

बचाये आबरू कैसे बहन-बेटी किसी की, जब,
उसे लेकर, रियाकारों के घर, परिवार जाता है।

चलो माना,कि दौलत की बदौलत सैर की तुमने,
वहाँ पर, तुम कहाँ पहुंचे जहां फ़नकार जाता है।

ग़ज़ल का शेर भी होता है , जैसे तीर नावक का,
बहुत है मुख़्तसर लेकिन जिगर के पार जाता है।

इंतिखाब- चुनाव, रियाकारों-पाखंडियों,
मुख़्तसर- छोटा/संक्षिप्त

आनन्द तन्हा जी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे

भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400

विशिष्ट पोस्ट

सूचना :- रचनायें आमंत्रित हैं

प्रिय साहित्यकार मित्रों , आप अपनी रचनाएँ हमारे व्हाट्सएप नंबर 9627193400 पर न भेजकर ईमेल- Aksbadauni@gmail.com पर  भेजें.