मुक़ाबिल झूठ के तब सच हमेशा हार जाता है ।।
यक़ीनन कुछ कमी तो है, हमारे इंतिखाबों में,
तभी तो शहर से चुन कर कोई मक्कार जाता है।
किसी नेता का बेटा फौज में भर्ती नहीं होता,
अरे, सरहद पे लड़ने के लिये दमदार जाता है।
हमेशा मुस्कुरा कर हम, झुका लेते हैं सिर अपना
हमेशा वार उसका इस तरह बेकार जाता है।
बचाये आबरू कैसे बहन-बेटी किसी की, जब,
उसे लेकर, रियाकारों के घर, परिवार जाता है।
चलो माना,कि दौलत की बदौलत सैर की तुमने,
वहाँ पर, तुम कहाँ पहुंचे जहां फ़नकार जाता है।
ग़ज़ल का शेर भी होता है , जैसे तीर नावक का,
बहुत है मुख़्तसर लेकिन जिगर के पार जाता है।
इंतिखाब- चुनाव, रियाकारों-पाखंडियों,
मुख़्तसर- छोटा/संक्षिप्त
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आनन्द तन्हा जी |
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