अनंत नेह हृदय में उसके,नेह की किनारा है वो
नौ माह कोख में रखती है, ममतामयी अकेली वो
प्रसव की असहनीय दर्द को,हसकर मां ही झेली वो
हर बार जन्म लेता रब भी, मां का आंचल पाने को
कभी राम कभी मोहन बने, ममता दुलार पाने को
गीता रामायण में देखो, मां की अमर कहानी है
परिभाषित कर न सका कोई, मूरत वो बलिदानी है
दया भाव ममता औ करुणा, ये उसकी परिभाषा है
बला छूए न यहाँ पुत्र को, ये उसकी अभिलाषा है
आंचल में छुपा कर रखे वो,हमें सौ सौ दुआओं से
करती उस रब से विनती वो,हम बचे इन बलाओ से
अंगुली पकड़ सिखाय चलना,गिर गिर संभलना होता
गर चोट लगे हमको जब भी, मां दिल का रोना होता
हर पाठ सिखाया है मां नें, प्रथम पाठशाला मां है
मां तो मां होती जग जननी, मां की क्या उपमा है
अपना निवाला खिलाया है, खुद भूखा तक सोयी है
सबके अश्रु पोछने वाली, अंदर में वो रोयी है
हमनें जब आंखे नम देखी, पूछा आंसू क्यो आंखो में
मां हंसकर कहती है कुछ नहीं,तिनका गिरा है आंखो में
बच्चे की मूक ध्वनि को भी,मां सहज ही पहचाने है
क्यो रोय लाल मेरा ये मां, पल में ही ये जाने है
भूख लगे लाला को तो मां, छाती का दूध पिलाती है
चांद मामा की लोरी सुना, अपने लाल को सुलाती है
आजा निंदिया रानी जरा, मेरे लाल को सुला जाना
हो सावन की शीतल बूँदों, प्रीत सुधा पिला जाना
रब सारी जगह नहीं होता,इसलिए मां को बनाया है
रब का ही रूप मात होती, मां ही रब का साया है
प्रेम की मूरत है अद्भुत मां, दया करुणा ममता मां है
सृष्टि टिकी जिसके हृदय पर,अद्भूत साहस क्षमता मां है
जिसकी परिभाषा होय ज्ञान, मूढ़ भी बन जाये ज्ञानी
मां हंसवाहिनी रज से ही, तर जाता है अज्ञानी
मां रामायण का मंत्र है, जीवन की वो गीता है
अग्निपरीक्षा में तपी गयी, जनकदुलारी सीता है
कुरान बाइबिल पावन वाणी, आंखो का मां पानी है
उमा रमा गंगा ब्रम्हाणी, मां जगदंबा भवानी है
ब्रम्ह को पालन झुलाती है, वो अनुसूइया माता है
संतान के भाग्य को बदल दे, वो मां भाग्यविधाता है
रब को जनने वाली मां है, मां ही सृष्टि की निर्माता
मां जीवन भी है आत्मा का,तब जीवन जग में आता
चारधाम मां के चरणों में, मंदिर-मस्जिद क्यो जाते
घर में भूखा बैठा है रब,और मंगल गीत क्यो गाते
मां को हृदय में बसा लेना , भवसागर तर जायेगा
रब को भी पा लेगा तू सुन, जीवन संवर जायेगा
भानु शर्मा रंज
श्रंगार और ओज कवि
धौलपुर राजस्थान
7374060400
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