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रविवार, 8 जुलाई 2018

मुक्तक - तन की नज़ाकत को मैं प्यार समझ बैठा - डा राहुल शुक्ला

तन की नज़ाकत को मैं प्यार समझ बैठा|
उनकी शराफ़त को मैं इकरार समझ बैठा|
वो तो यूँ ही सफर के मददगार थे|
मैं तो उनको जीवन का हार समझ बैठा|
डा राहुल शुक्ला "साहिल" इलाहाबाद

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