हमारी तुम्हारी नज़र मिल रही है ।
तभी ज़िन्दगी फूल सी खिल रही है ।।
भरोसा करो इन जवां धड़कनों पर ।
नज़र ही नहीं सिर्फ क़ातिल रही है ।।
फटा दिल रफूगर नहीं जोड़ पाता ।
इसे चाहतों की सुई सिल रही है।
फँसा देख खुद को बड़े कटघरे में ।
जुबां शेर की भी नहीं हिल रही है ।।
चले तो गए 'राज़' होकर ख़फ़ा वो ।
उन्हें भी पता रात बोझिल रही है ।।
- विवेक राज मिश्र
तभी ज़िन्दगी फूल सी खिल रही है ।।
भरोसा करो इन जवां धड़कनों पर ।
नज़र ही नहीं सिर्फ क़ातिल रही है ।।
फटा दिल रफूगर नहीं जोड़ पाता ।
इसे चाहतों की सुई सिल रही है।
फँसा देख खुद को बड़े कटघरे में ।
जुबां शेर की भी नहीं हिल रही है ।।
चले तो गए 'राज़' होकर ख़फ़ा वो ।
उन्हें भी पता रात बोझिल रही है ।।
- विवेक राज मिश्र
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