अदब की दो मशहूर शख्सियतें - शकील बदायूनी और साहिर लुधियानवी।
एक के लिए ताजमहल एक शहंशाह की मोहब्बत की निशानी है, एक ऐसी कहानी है, जो कभी खत्म नहीं हो सकती, जबकि दूसरे शायर के लिए यह एक ऐसी इमारत है, जो गरीबी और गरीबों का मजाक उड़ाती है। आपके लिए ताजमहल क्या है।
आप भी इन दोनों शायरों की तखलीक पर गौर कीजिए
शकील बदायूनी :-
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शकील बदायूनी (स्रोत : गूगल) |
इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महल
सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी हैं
इसके साये मे सदा प्यार के चर्चे होंगे
खत्म जो हो ना सकेगी, वो कहानी दी है
एक शहंशाह ने बनवा के...
ताज वो शम्मा है उल्फत के सनमखाने की
जिसके परवानों मे मुफलिस भी, जरदार भी है
संग-ए-मरमर में समाए हुए ख्वाबों की कसम
मरहले प्यार के आसान भी, दुश्वार भी हैं
दिल को एक जोश इरादों को जवानी दी है
एक शहंशाह ने बनवा के...
ताज इक जिंदा तसव्वुर है किसी शायर का
इसका अफ़साना हकीकत के सिवा कुछ भी नहीं
इसके आगोश में आकर ये गुमां होता है
जिंदगी जैसे मुहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं
ताज ने प्यार की मौजों को रवानी दी है
एक शहंशाह ने बनवाके...
ये हसीं रात ये महकी हुई पुरनूर फिजां
हो इजाजत तो ये दिल इश्क का इजहार करे
इश्क इंसान को इंसान बना देता है
किसकी हिम्मत है मुहब्बत से जो इनकार करे
आज तकदीर ने ये रात सुहानी दी है
एक शहंशाह ने बनवाके...
स्रोत :- Rekhta.org से
साहिर लुधियानवी :-
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साहिर लुधियानवी (स्रोत : गूगल) |
ताज तेरे लिए इक मजहर-ए-उल्फत1 ही सही
तुम को इस वादी-ए-रंगीं2 से अकीदत3 ही सही
मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझसे...
बज्म-ए-शाही4 में गरीबों का गुजर क्या मानी
बज्म-ए-शाही4 में गरीबों का गुजर क्या मानी
( 1-मोहब्बत की निशानी, 2- सुंदर स्थान,
3- आदर/ पसंद, 4- रॉयल कोर्ट)
सब्त जिस राह पे हों सतवत-ए-शाही1 के निशां
3- आदर/ पसंद, 4- रॉयल कोर्ट)
सब्त जिस राह पे हों सतवत-ए-शाही1 के निशां
उस पे उल्फत भरी रूहों2 का सफर क्या मानी
(, 1- राजसी वैभव, 2-प्रेमिका)
मेरी महबूब पस-ए-पर्दा-ए-तशरीर-ए-वफा1
तूने सतवत2 के निशानों को तो देखा होता
मुर्दा शाहों के मकाबिर3 से बहलने वाली,
अपने तारीक4 मकानों को तो देखा होता
(1- मोहब्बत/ विश्वास के इस दिखावटी पर्दे के पीछे,
2- धन/वैभव 3.मकबरा 4. अंधियारे)
2- धन/वैभव 3.मकबरा 4. अंधियारे)
अनगिनत लोगों ने दुनिया में मुहब्बत की है
कौन कहता है कि सादिक1 न थे जज्बे उनके
लेकिन उनके लिये तश्शीर2 का सामान नहीं
क्यूंकि वो लोग भी अपनी ही तरह मुफलिस3 थे
(1- सच, 2- प्रचार, 3-गरीब)
ये इमारत-ओ-मकाबिर, ये फासिले, ये हिसार1
मुतल-कुलहुक्म2 शहंशाहों की अजमत3 के सुतून4
दामन-ए-दहर5 पे उस रंग की गुलकारी6 है
जिसमें शामिल है तेरे और मेरे अजदाद7 का खून
(1.किले, 2-सनकी, घमंडी, 3-महानता, 4-निशानी,
5- दुनिया के दामन पर, 6-फूल और शराब, 7- पूर्वज)
5- दुनिया के दामन पर, 6-फूल और शराब, 7- पूर्वज)
मेरी महबूब! उन्हें भी तो मुहब्बत होगी
जिनकी सानाई1 ने बख्शी है इसे शक्ल-ए-जमील2
उनके प्यारों के मकाबिर रहे बेनाम-ओ-नमूद3
आज तक उन पे जलाई न किसी ने कंदील4
(1-कलात्मकता, कारीगरी, 2-खूबसूरत रूप,
3-बिना किसी पहचान के, गुमनाम, 4-मोमबत्ती)
3-बिना किसी पहचान के, गुमनाम, 4-मोमबत्ती)
ये चमनजार1, ये जमुना का किनारा, ये महल
ये मुनक्कश2 दर-ओ-दीवार, ये महराब, ये ताक
(1- बगीचा, 2-आकर्षक)
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