हिंदी साहित्य वैभव

EMAIL.- Vikasbhardwaj3400.1234@blogger.com

Breaking

गुरुवार, 12 जुलाई 2018

मुहब्बत ग़ज़ल संग्रह से अक्स बदायूँनी की जी कुछ ग़ज़लें

ग़ज़ल  क्र० 1

बहर-.हज़ज मुसद्दस सालिम
🌸 वज़्न - 1222  1222  1222
अरकान-  मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन
🌸 क़ाफ़िया— आ...स्वर
🌸 रदीफ़ --- क्यूँ नहीं आया...

नए    साँचे    में   ढलना   क्यूँ    नहीं  आया ।
हमें   खुद   को   बदलना  क्यूँ    नहीं  आया ।।
मिला  धोखा  हमें  जब   लोगों  से  फिर भी ।
हमें    इंसाँ    परखना    क्यूँ    नहीं    आया ।।
जिसे   देखो,   जुबाँ   पर   झूट   हैं, आखिर ।
हमें    सच   को   छुपाना   क्यूँ  नही  आया ।।
हरिक   पल   जिंदगी   तेरा    नया   किस्सा ।
हमें    काँटो   पे   चलना   क्यूँ   नहीं  आया ।।
किसी   ने   शूलों    की   राहें   बना   डाली ।
हमें   ज्वाला   में   तपना   क्यूँ  नही  आया ।।
हया   ए   राह,  मिलती   ठोकरें   फिर   भी ।
हमें   गिरकर   सभलना   क्यूँ   नही  आया ।।
समय    का   फेर   तो  देखो  हमें  अब  भी ।
कठिनता   से   निकलना  क्यूँ   नहीं  आया ।।

अक़्स बदायूँनी
    

ग़ज़ल क्र० 2

🌸 वज़्न - 212  212  212  212
बहर-मुतदारिक मुसम्मन सालिम
अरकान-फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन
🌸 क़ाफ़िया— आ स्वर
🌸 रदीफ़ ---  कर दिया

प्यार   में   उसने   मुझको   फ़ना  कर  दिया ।
ख़ाक  सा  था  मैं  मुझको  खुदा  कर  दिया ।।

उसके   लहजे   ने   कायल   हमें  था  किया ।
हक  मुहब्बत  का  उसने  अदा   कर   दिया ।।

चेहरे     पर     सदा     मुस्कराहट     रहे ।
प्यार  में  हमनें  दिल  आईना  कर  दिया ।।

इश्क   उसका   वफा   से    मुकर  ही  गया ।
जख़्म  दिल  का  यूँ  उसने  हरा  कर  दिया ।।

याद  कर   तुझको   आँखों  से  आँसू  बहें  ।
यार   तुम  ने  अज़ब  फासला   कर   दिया ।।

अब   कहाँ  मिलते  हैं  खुशमिजाजी  से  वो  ।
उम्र    भर    को   हमें   गमज़दा   कर   दिया ।।

हाँ  बहुत  गहरा  रिश्ता  था  इक  शक़्स  से  ।             
जिसको   चाहा  था  उसने  दगा  कर  दिया ।।

© अक़्स बदायूँनी


गजल क्र○ 3

बहर- 122 122 122 122
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
काफिया- आने
रदीफ़- लगे हैं

बिना  बात  के  मुस्कुराने  लगे  हैं ।
हमें  प्यार  वो  यूँ  जताने  लगे  हैं ।।

कभी  माँगते  थे  हमें  वो  दुआ  में ।
वही  होंठ  अब  गुनगुनाने  लगे  हैंं ।।

जिसे  हम  भुलाना  अजी चाहते पर ।
सुबह  शाम  वो  याद  आने  लगे  हैंं ।।

तरसते  रहें  फक्त  दीदार  को  हम ।
उसी   चेहरे   को   भुलाने   लगे  हैंं ।।

ढहाये  हैं जुल्मों  सितम  याद  करके ।
हमें   हाल   ए   दिल  बताने  लगे  हैंं ।।

गुजरने  लगी  रात  जबसे  तड़प  कर ।
वही  दर्द   दिल  का  छुपाने  लगे  हैंं ।।

किया  साथ  चलने  का  वादा  जिन्होंने ।
वही   आज   सब   हिचकिचाने  लगे  हैंं ।।

© विकास भारद्वाज "अक्स बदायूँनी"



गजल क्र○ 4

बह्र           :  २१२२ २१२२  २१२
अरकान   : फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
काफिया    : अा स्वर
रदीफ      :  छोड़िये

रोज   का    झूठा    बहाना    छोडिये ।
अब   हमारा   दिल   दुखाना  छोड़िये ।।

जो बनाये   दोस्त   पैसों   से  सुनो ।
दोस्ती   को   आजमाना    छोड़िये ।।
 
अब हमारे  दिल  की  तुम  हो  आरज़ू ।
ख्वाब   में   आकर   सताना   छोड़िये ।।

शाम  को   बागों  में  आ  हमसे  मिलों ।
आज   से   मैख़ाने    जाना    छोड़िये ।।
 
आज  से   सुनना   हमारी  भी  ग़ज़ल ।
गीत    अब   तो   गुनगुनाना   छोड़िये ।।

हाँ बहुत  ठोकर  मिली  मुझको सुनो ।
जिंदगी   अब   तो   रुलाना  छोड़िये ।।

लोग  अब  डरते  न  क्यूँ   भगवान  से ।
आग   घर - घर  अब  लगाना  छोडिये ।।

© विकास भारद्वाज "अक्स बदायूँनी"



गजल क्र○ 5

बह्र           : 1222  1222  1222  1222
काफिया    :  आ
रदीफ        :  लेना दिवाली पर
                                                       
दिलों   की   दूरियाँ   सबसे   मिटा   लेना  दिवाली  पर ।
सभी  को  अब  गले  से  तुम  लगा  लेना दिवाली  पर ।।

जरा  मन  के  अँधेरे  को  मिटा  इस   बार  तुम  देखो ।
मुहब्बत का  दिया  दिल  में  जला  लेना  दिवाली  पर ।।

पुराने   हो   गये  रिश्तें  नया  करके  दिखाओ  तुम  ।
बनाया  जो  कभी  रिश्ता  बचा  लेना  दिवाली  पर ।।

गली  में  आज  निकलेगा  चमकता  चाँद ए  गौरी ।
जला  के  दीप  थोड़ा  मुस्कुरा  लेना  दिवाली  पर ।।

रहा  ताउम्र   सबसे   दूर   घर   को   छोड़  परदेशी ।
जरा  तू  प्यार  लोगो  पर  लुटा  लेना  दिवाली  पर ।।

© विकास भारद्वाज "अक्स बदायूँनी"



ग़ज़ल  क्र० 6

वज़्न -1222 1222 122
🌸 क़ाफ़िया -आ स्वर
🌸रदीफ- हुआ हूँ

ग़में     तन्हाई     में     खोया    हुआ   हूँ ।
किसी   की   याद   का   मारा   हुआ  हूँ ।।

आते   वो   याद,   तन्हा   शाम,  यानी ।
अभी  तक  दर्दे - दिल  पाला  हुआ  हूँ ।।

किसी   पल   मौत   के  आगोश  में  ग़ुम ।
हो   कर   इक   टूटा  ही  तारा   हुआ  हूँ ।।

जहाँ   पर   छोड़कर   जो   वो   गये  थे ।
वहीं    पर    मैं   अभी   ठहरा   हुआ  हूँ ।।

उसी    ने    इश्क    में     की    बेवफाई  ।
समंदर   सा   मैं    तब   खारा   हुआ  हूँ ।।

© विकास भारद्वाज "अक्स बदायूँनी"



ग़ज़ल  क्र० 7

बह्र -  1222    1222     1222       1222
काफ़िया - अर
रदीफ -  अच्छा नहीं लगता

तुम्हारे  बिन  मुझे अपना ये घर अच्छा नही लगता ।
नही हो साथ तुम अब ये सफ़र अच्छा नही लगता ।।

युं  तो  चलते  रहे  थे साथ तुम कल तक हमारे पर ।
चुराते  हो  हमींं  से  अब  नज़र अच्छा नहीं लगता ।।

न  खेलों  तुम  किसी  की जिंदगानी से सितमगर बन ।
अमन  औ  चैन  के  बदले  कहर  अच्छा  नहीं लगता ।।

तेरी  यादों  के  साये  से अभी  दिल  को तसल्ली है ।
पुरानी  बातों  को अब  सोचकर अच्छा नहीं लगता ।।

परिंदे  अब   कहाँ  अपना  ठिकाना   ढूढेगें   लोगो ।
गर्मी  की  धूप  में  सूखा  शज़र  अच्छा नही लगता ।।

कभी  जो  झुग्गियों  पे आँधियाँ  रूठें तो सच हमको ।
गरीबों  की  निगाहों  में  ये  डर  अच्छा  नहीं  लगता ।।

© विकास भारद्वाज "अक्स बदायूँनी"

ग़ज़ल  क्र० 8
बहर-.हज़ज मुसद्दस सालिम
🌸 वज़्न - 1222  1222  1222  1222
अरकान-  मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन
🌸 क़ाफ़िया— आन..स्वर
🌸 रदीफ़ --- लगती हैं....
मुझे   तेरे   बिना   दुनिया   बहुत  वीरान  लगती  है ।
भली  ये  जिंदगी  लेकिन  मुझे  शमशान लगती  है ।।
बहुत कोशिश की  हैं  ये  जिंदगी  तुझको बचाने की ।
चले   ये   साँस   जो   मुझे   ही   अंजान  लगती  है ।।
जो   वृद्धाश्रम   में    बूढी   माँ   को  छोड़  आये  हैं ।
सुनों  वो  बूढी  महिलायें   मुझे  भगवान  लगती  हैं ।।
न  जाने  कब  गुजर  जाये  सफ़र  ए  जिंदगानी  का ।
मुझे  तो  एक  दो  दिन  की  ही  ये महमान लगती हैं ।।
मिले  जिसको  सही  राहें  जो  अब के दौर  में  लोगों ।
अजी  ये  जिंदगी  उसको  बहुत  आसान  लगती  हैं ।।
कभी  देखा  नही  मैंने - तुझे  पर  आज  देखा  तो ।
लगा  बर्षों  पुरानी  अपनी  तो  पहचान  लगती  है ।।
©विकास भारद्वाज "अक्स बदायूँनी"


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे

भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400

विशिष्ट पोस्ट

सूचना :- रचनायें आमंत्रित हैं

प्रिय साहित्यकार मित्रों , आप अपनी रचनाएँ हमारे व्हाट्सएप नंबर 9627193400 पर न भेजकर ईमेल- Aksbadauni@gmail.com पर  भेजें.