गजल- निश्छल आँखे
चला आया बादल उमड़ता हुआ ।
अम्बर से झमाझम बरसता हुआ ।।
कोई आशियाना भी था कल यहाँ ।
चमन आज ये कैसा उजड़ा हुआ ।।
किसी की आहें गूंजती हैं शायद ।
दफ़न है कोई राज अरसा हुआ ।।
बिखरते गऐ दिल के अरमाँ मेरे ।
कभी था ये गुलशन महकता हुआ ।।
तुफानी सी लहरो में कश्ती फँसी ।
अभी अपना दरिया है ठहरा हुआ ।।
जिसे देखती "अक्स" निश्छल आँखें ।
फलक पर जैसे चाँद ठहरा हुआ ....।।
© विकास भारद्वाज "अक्स"
27 दिसम्बर 2017