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गुरुवार, 28 दिसंबर 2017

गजल- निश्छल आँखे


                       
चला आया बादल उमड़ता हुआ ।      
अम्बर से झमाझम बरसता हुआ ।।
               
कोई आशियाना भी था कल यहाँ ।
चमन आज ये कैसा उजड़ा हुआ ।।

किसी की आहें गूंजती हैं शायद ।
दफ़न है कोई राज अरसा हुआ ।।

बिखरते गऐ दिल के अरमाँ मेरे ।
कभी था ये गुलशन महकता हुआ ।।

तुफानी सी लहरो में कश्ती फँसी ।
अभी अपना दरिया है ठहरा हुआ ।।

जिसे देखती "अक्स" निश्छल आँखें ।
फलक पर जैसे चाँद ठहरा हुआ ....।।

© विकास भारद्वाज "अक्स"
27 दिसम्बर 2017

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