नये जमाने' का' अब हमने' पैरहन देखा ।
बड़ा अजीब यहाँ का रहन सहन देखा ।।
वो शंहशाह हो' या कोई' रंक हो हमने ।
सभी पे चलते समय एक सा ही कफ़न देखा
न कोई' अपना' न कोई पराया' लगता है ।
हरेक आदमी' का जब मतलब से मिलन देखा
बिखरती' जिंदगियां झूठी शानो-शौकत में ।
ये' कैसा' हमने' शहर का तेरे' चलन देखा ।।
बे-घर किये बूढे' माँ बाप आज बच्चों ने ।
ठिठुरते' सर्द रातों में पड़े सयन देखा ।।
बहार आती' थी' खिलते थे फूल बागों में ।
विकास आज वो' उजड़ा हुआ चमन देखा ।।
सयन- नीद्रा,सोना
©विकास भारद्वाज "अक्स बदायूँनी"
2 जनवरी 2018
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