इंसाँ छोड़ जाता' है निशानियाँ कभी कभी।
ख़त्म शो हो' खूब बजती' तालियाँ कभी कभी ।।
कुछ अलग करो तो हट के बनती हैं हमेशा ही ।
कुछ ही लोगों' की नई कहानियाँ कभी कभी ।।
धर्म के ही' नाम पर शहर में' हो रहे दंगे ।
तब इंसानों की' होती' तबाहियाँ कभी कभी ।।
अब गली में' शोर होता' ही नही पढाई' के ।
बोझ से बच्चों की खत्म छुट्टीयाँ कभी कभी ।।
जिंदगी में' लगता' है यहाँ आ' के खो' ही जाये ।
यूँ ही मिलती है हसीन वादियाँ कभी कभी ।।
पहले' होता इंतजार फोन का यूँ' अब तो' बस ।
मेरे' घर आती हैं' उसकी' चिठ्ठियाँ कभी कभी ।।
"अक़्स" उसका कोई' भी पता नही लगा अभी ।
बंद रहती' उसके' घर की' खिड़कियाँ कभी कभी ।।
© विकास भारद्वाज
9627193400
बदायूं (उ०प्र०)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे
भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400