वक़्त पर जलदान का न निभा पाते फ़र्ज़,
आता तुम्हें कोई उपकार भी नहीं है मेघ.
गरज-गरज के डराना चाहते हमेशा
कैसा है हृदय जहाँ प्यार भी नहीं है मेघ.
जोकि तप्त मन की अगन का शमन करे
तुम पर ऐसी जलधार भी नहीं है मेघ.
हाड़तोड़ यत्न से ये पकी है फ़सल, तुम्हें-
नष्ट करने का अधिकार भी नहीं है मेघ.
उधर खेत में पका पकाया भीग रहा है धान्य हमारा
यह मौसम अपने किसान का खुलेआम आखेट करेगा.
कितने ही मासूमों को फिर सोना भूखे पेट पड़ेगा.
-
आदित्य तोमर
वज़ीरगंज, बदायूँ
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