हमसफ़र
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अपना हाथ तेरे हाथ में दें रही
थाम तो लोगे न?
मजबूती से पकड़ कर रखोगे
साथ छोड़ोगे तो नहीं न?
पूरी खुशियाँ तुझ पर लुटा दूंगी
मुझे गम तो नहीं दोगे न?
कदम से कदम मिलाकर चलने की बात करते होl
मुसीबत में पीछे नहीं हटोगे न?
माँ-पिता, भाई-बहन, दोस्तों को छोड़ कर आउंगीl
सबका किरदार निभा पाओगे न?
मेरी गलती पर डांटकर नहीं
प्यार से समझाओगे न?
सीता की तरह तुम्हें पूजूंगीl
राम की तरह पत्नीव्रता धर्म निभाओगे न?
मन में डर है, तेरे दर पर कैसे आऊंगीl
मेरे डर पर काबू करके गृहप्रवेश करवा दोगे न?
-ट्विंकल वर्मा, आसनसोल(प,बं)
मैं ट्विंकल वर्मा हूँl मैं आसनसोल में रहती हूँl यह मेरी स्वरचित कविता हैl कृपया कर के आप अपने ब्लॉग में स्थान देंl🙏
बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
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