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सोमवार, 4 मई 2020

जब हमने लिखना शुरू किया,ना कोई बहर देखा है,
सच बस इतना कि जो देखा,जिंदगी का कहर देखा है।

आस पास का रूदन, दर्द शाम ओ सहर देखा है,
गैरों की देखी प्रीत,अपनों के अंदर ,ज़हर देखा है।

टूटते देखें दायरे,दायरों में सिमटा,हर पहर देखा है
रिश्तों का रिश्तों पर ही टूटता विश्वास,कहर देखा है।

हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई,बढ़ता खून में ज़हर देखा है,
तेरा,मेरा करते इंसान से दानव होते हर पहर देखा है।

आंखों में सिमटा समंदर, किनारे तोड़ता लहर देखा है,
दिन में शमशान हुआ,रात को गूंजता शहर देखा है।

समंदर की उड़ती भाप, बरसता मेघ,कहर देखा है,
फिर से वही पानी को समंदर से होता नहर देखा है।

कौशल बंधना पंजाबी।
भाखड़ा नांगल
पंजाब।

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