विषय - दहेज़
दहेज़ के नाते जब उसे दी जाती थी यातनाएं
वो अपने परिवार के लिए ख़ामोशी से सब सहती
अक्सर उसके पैरों को जलाया जाता गर्म चिमटों से
भूखी प्यासी वो तड़पती रहती कई कई दिन रात
मगर कभी नहीं मांग करती अपने मायके से कुछ
वो लड़की है वो जानती है मायके की परिस्थिति
पता है बैंकों से लोन लेकर की गई है उसकी शादी
दर्द,प्रताड़ना को रोज़ सहती लेकिन ख़ामोश रहती
एक दिन ससुराल वालों ने मिट्टी का तेल डाल
जला दिया उस बहू को जिसके हृदय में लक्ष्मी बसती थी
तड़प और प्यास से वो चिल्लाती रही पापा भैया मां
मगर दहेज के लोभी उसे जलता देख हंसते रहे
बेटी को मुखाग्नि देते वक़्त पिता ने बस यहीं कहा
"बेटी नहीं होती पराया धन,बेटी तुझे न्याय दिलाऊंगा"
न्याय के देवी ने आंखों में फ़िर बांध लिया काली पट्टी
स्वतंत्र हो कर घूमने लगे उसके ससुराल वाले
मगर पिता ने वादा पूरा किया उन्हें सजा दिलवाया
मुकदमें के लिए मां ने बेच दी मंगलसूत्र भाई ने छोड़ दी पढ़ाई
आख़िर में पिता की ये बात सच निकली
"बेटी नहीं होती पराया धन,बेटी तुझे न्याय दिलाऊंगा"
शिवम् मिश्रा "गोविंद"
मुंबई महाराष्ट्र
मैं शिवम् मिश्रा "गोविंद" घोषणा करता हूं कि उपरोक्त रचना मेरे द्वारा स्वरचित है।किसी भी तरह के कॉपी राईट के उलंघन के मामले में पूर्णत मैं ज़िम्मेदार रहूंगा संपादक मंडली नहीं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे
भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400