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सोमवार, 4 मई 2020

हम वहीं हैं यहां थे...

हम वहीं हैं यहां थे
मगर तुम वो नहीं रहे।
वक्त ठहर सा गया,
जब से तुम मिल गये।
मैं जो हूं वो नहीं थी कभी,
मुझमें अब मैं कहां रही।
मगर तुम वो नहीं रहे।
वो जो मेरी टीस सुनता था,
कोसों दूर से,न जाने कैसे?
लाश बन जाती थी मैं,
सांस फूंकता था मुझमें।
दूर हो जाती थी जब खुद से,
मेरा बनकर ,
बस जाता था मुझमें।
मगर तुम वो नहीं रहे।
प्रेम की मूर्ति बन जाता था,
मुझे मुझसे ही मिलवाता था।
अब ढूंढ़ती हूं लाख,
 मगर नहीं मिलते।
मुरझाए फूल शायद ,
दोबारा नहीं खिलते।
भ्रमर फूल के मौसम में,
आकर चला गया शायद,
जो फूल खिल चुके एक बार,
शायद फिर नहीं खिलते।
जो बिछुड जाए ,
फिर नहीं मिलते।
मगर तुम मेरे भीतर बसे हो,
कहां जाओगे।
ठोकर कभी लग जाए,
याद रखना, यहां छोड़ा था,
वहीं फिर हमें पाओगे।
विश्वास है, वही मेरे मनमीत बनकर,
 लौट आओगे।
हम वहीं हैं यहां थे,
मगर तुम वो नहीं रहे।

कौशल बंधना पंजाबी।
भाखड़ा नांगल डैम
पंजाब।

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