भीष्म
शाम हो गई थी उम्र की,
उसका हृदय महान् था।
अंदर दर्द भरा था उसके ,
पर विचार दृढ़ इंसान था।
भीष्म था वो,प्रतिज्ञाबद्ध,
स्वयं में ही वह महान् था।
उसकी प्रतिज्ञा का लोहा,
मानता सारा जहान था।
ईश्वर भी उसकी शक्ति से,
कहां कभी अंजान था।
अभिमान नहीं उसमें,
मगर स्वाभिमान था।
जगत विदित था धर्मात्मा,
निःसंदेह भीष्म महान् था।
कौशल बंधना पंजाबी।
पंजाब।
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