वही नाम होंटों पर आने लगता है.
वह कि धूल बरसों से जिसे दबाए है,
आँखों में तस्वीर वही छा जाती है.
सुना ? अभी छन-छन-छन नूपुर ध्वनि गूंजी.
अभी-अभी इक महक हवा लेकर आई
अभी-अभी सिहरन सी तन में दौड़ पड़ी.
चलो ख़ैर, तुम क्या समझो यह मोहजाल
वह क्या जान सका जो व्यक्ति न मोहा हो.
वही हृदय यह कम्पन पहचाने जिसके
तार कसे हों विधि ने निरत संयोगों से.
सबका सम्मिश्रण करके जो सत्व बना,
उसी सत्व को सुधी प्रेम कहते शायद
अश्रु कहा जाता जिसका पहचान पत्र.
कितने चित्र सजे रहते तहखानों में.
कितने अश्रु-अनबहे बिखरे पड़ते हैं
रह जाती कितनी पीड़ा अनकही हाय,
मन के झंझावाती कठिन थपेड़े भी
द्वार डिगा पाते ही नहीं और इक दिन
जग पर धूल न पड़ पाती लेकिन हमको
उन चित्रों पर धूल डालनी पड़ती है.
-
आदित्य तोमर
वज़ीरगंज, बदायूँ (उ.प्र.)
9368656307
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