विषय -प्राकृतिक सौंदर्य और मनुष्य में बढ़ता हुआ फासला
मानव जीवन पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर है | हम अपनी आवश्यकता की लगभग सभी चीजें प्रकृति से ही प्राप्त करते हैं |
मनुष्य और प्रकृति के बीच बहुत गहरा सम्बन्ध है। मानव द्वारा प्रकृति की रक्षा करने से प्रकृति में हरा भरा और वातावरण स्वच्छता होने से प्रकृति सौन्दर्यमयी का अनुभव करने लगती है।
सुबह के नर्म हवा घूमना स्वास्थ के लिए लाभदायक है और धूप में पेडों की छाया में बैठना कितना सुखद और आरामदायक लगता है लेकिन समय के बढते चक्र में प्रकृति मे प्रदूषण बढने लगा है ।
पर्यावरण में अब विषैली गैसें घुलने लगी है ।
वनों की अधाँधुध कटान के कारण तथा नदियों मे विषैले रसायन से प्रकृति मे प्रदूषण तथा नई नई बीमारीयाँ फैल रही है।
मनुष्य की आयु कम होने लगी। धरती एक-एक बूँद पानी के लिए तरसने लगी है, लेकिन यह वैश्विक तपन हमारे लिए चिन्ता का विषय नहीं बना।
तापमान में तेजी से बढ़ोत्तरी के कारण दुनिया भर में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। यही हाल रहा तो आगामी कुछ दशकों में हमारी धरती वन विहीन हो जाएगी। हमारे पड़ोसी देशों में जितने वृक्ष काटे जाते हैं, उतने परिमाण में लगाए भी जाते हैं। हमें इस बात पर विचार करना चाहिए ।
मनुष्य और प्राकृतिक के बीच बढता फासला हमें बतलाता है कि जब पाप अधिक बढ़ता है तो धरती काँपने लगती है। यह भी कहा गया है कि धरती घर का आंगन है, आसमान छत है, सूर्य-चन्द्रमाँ ज्योति देने वाले दीपक हैं, समुद्र पानी के मटके हैं और पेड़-पौधे आहार के साधन हैं।
ध्यान रखना होगा हमें कि प्रकृति किसी के साथ भेदभाव या पक्षपात नहीं करती। इसके द्वार सबके लिए समान रूप से खुले हैं, लेकिन जब हम प्रकृतिक संसाधनों से खिलवाड़ करते हैं तब उसका परिणाम भूकम्प, सूखा, बाढ़, सैलाब, तूफान की शक्ल में आता है, फिर लोग काल के गाल में समा जाते हैं।
हम कह सकते हैं कि प्रकृति से मनुष्य का सम्बन्ध अलगाव का नहीं है, सचमुच प्रकृति से प्रेम हमें उन्नति की ओर ले जाता है और इससे अलगाव हमारे लिए विनाशकाल के कारण बनते हैं।
विकास भारद्वाज 'सुदीप'
21 जुलाई 2017
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