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शनिवार, 6 मई 2017

गजल

गजल क्र○ 4

तुम्हारे पढे खत जमाना हुआ
मिले बाद वर्षों फसाना हुआ

सताती मुझे याद शामों-सहर
जख़म आज मेरा पुराना हुआ

मुझे देख पलकें झुका के मिली
हमारा सफ़र भी सुहाना हुआ
                  
किये यूँ पराये वफा से मुकर
उसे छोड आँसू बहाना हुआ

कभी इश्क का भी चढा था जुनूं
बिछड के कही ना ठिकाना हुआ

विकास भारद्वाज "सुदीप"
04/05/2017

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