गजल क्र○ 3
बह्र- 1222×4
इरादा जो किया उसको मुझे अब दिखाना है
मुहब्बत में मिला गम है वफा यूँही निभाना है
ढहाये जो सितम उसने अभी तक इस मुहब्बत में
जिगर घायल हुआ मलहम उसे ही अब लगाना है
जिगर घायल हुआ मलहम उसे ही अब लगाना है
अगर उसको तर्के-उल्फत फ़साना था मुहब्बत में
जुदा होके सहर संगदिल-फरेबी को भुलाना है
जुदा होके सहर संगदिल-फरेबी को भुलाना है
बिछड जाओ बहारेँ भी कही होगी मुहब्बत में
उसी से प्यार है हमको गले उसको लगाना है ।
उसी से प्यार है हमको गले उसको लगाना है ।
वो खुद ही चाँद है श्रृंगार की उसको जरूरत क्या
मुझे तो अब तुम्हारे खत कलम-ए-खूं लिखाना है
मुझे तो अब तुम्हारे खत कलम-ए-खूं लिखाना है
यही सोच ले डूबेगी उसे खुद पे गुमाँ रहा
मुझे तो अब सनम तन्हा सोच अश्कों को बहाना है
मुझे तो अब सनम तन्हा सोच अश्कों को बहाना है
चलो उससे नया दर्द मिला हमदम खुशी से अब,,
नहीं कल हो ज़िंदा हमको खुदा के पास जाना हैं,,
नहीं कल हो ज़िंदा हमको खुदा के पास जाना हैं,,
©विकास भारद्वाज "सुदीप"
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