गजल क्र○ 2
मुहब्बत लुटाने के दिन आ रहे है
नजर को चुराने के दिन आ रहे है
तुम्हारी निगाहें मुण्डेरे पे अटकीं
कबूतर उडाने के दिन आ रहे है
कबूतर उडाने के दिन आ रहे है
तुम्हारा बदन पैरहन ये गुलाबी
अदाऐं दिखाने के दिन आ रहे है
अदाऐं दिखाने के दिन आ रहे है
खतों से खुलासा हुआ है तुम्हारे
कि डोली सजाने के दिन आ रहे है
कि डोली सजाने के दिन आ रहे है
सितारें जमीं पे सुदीप ले उतारो
उन्हें आजमाने के दिन आ रहे है
उन्हें आजमाने के दिन आ रहे है
©विकास भारद्वाज "सुदीप"
9627193400 28 मार्च 2017
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