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रविवार, 23 अप्रैल 2017

लघुकथा:- नारायणी

एक महिला थी उसका नाम नारायणी अर्थात् लक्ष्मी I उसके तीन बेटे और बेटियाँ थी सभी का विवाह हो चुका था और सभी बेटे अपना नया मकान बनाकर रहने लगे जिनमें उसका सबसे बडा बेटा उमेश केन्द्रीय कर्मचारी था । उमेश के दो बेटे थे वो अमेरिका मे विवाह कर वही के निवासी हो गये और उमेश से छोटा भाई अरविन्द प्राथमिक विधालय में शिक्षक था और नारायणी का सबसे छोटा बेटा अपना विजनिश  करता था I
नारायणी अब वक्त के साथ बूढी होने लगी बुढापा एक ऐसा कडवा सच है जिसे हर
  प्राणी को आना है समय बीतता गया अब वो बूढी माँ कमजोर और चलने फिरने में असमर्थ होने लगी I उसके बेटे उसको अपने पास रखने से कतराते थे आज के जमाने में ऐसा लगता है कि पैसे की अमीरी आने पर लोग अपने माँ बाप को ही भूला देते है उनको पैसो के अलावा कुछ नही दिखता I
लेकिन उस बुढी माँ को घर से निकाल दिया आज वही लोग समाज में खुद की शक्सयित को बडा दिखाने के लिए रिश्तों को तार तार कर देते है ऐसा कुछ नारायणी के साथ हुआ आज वो इधर-उधर रहकर बुढापा काट रही है  उस बुढी महिला की स्मरण शक्ति भी उम्र के साथ कम होने लगी उसके बेटे आँखों का चश्मा तक नही बनबा सके वो अपने बेटों और बहुओं के ताने और रोकटोक से परेशान हो गयी । उसके बेटे ही नही ना जाने कितने लोगों के किस्से जमाने में देखनो को आज भी मिल रहे है ।
माँ क्या होती है समझ जाओगे शायद तुम भी किसी रात को सबके खाने के बाद एक दिन रसोई में अपना खाना खुद ढूढों माँ तो वो भगवान है जिसे बुखार भी हो जाये और उसके बेटे को पता चले तो पता है क्या कहेगी कि बेटा खाना बना रही थी ना इसलिए गर्म हूँ I
गरीबी थी जो सबको एक आंचल में सुला देती थी
,
अब अमीरी आ गई तो सबने अलग मक़ान बना लिए I
लोग न जाने क्यूँ अपने हिन्दुस्तान की संस्कृति और सभ्यता को भूलते जा रहे है I


मेरी यह कहानी पूर्णतः मौलिक
, अप्रकाशित एंव अप्रसारित है।
©विकास भारद्वाज "सुदीप"
कस्बा-  मेन चौराहा खितौरा
बदायूँ-
243633  (प्र○)
दूरभाषा- +91 9627193400
ईमेल- vikasbhardwaj3400@gmail.com
ब्लॉग/साइट- www.vbsudeep.blogspot.in

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